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मंत्र, विद्या और पदवी पात्रता बिना नहीं देनी चाहिए: आचार्यश्री उदयप्रभ सूरीजी

मंत्र, विद्या और पदवी पात्रता बिना नहीं देनी चाहिए: आचार्यश्री उदयप्रभ सूरीजी

पर्युषण एवं वार्षिक कर्तव्य के तहत चैत्यपरिपाटी व विशाल सामूहिक रथयात्रा का हुआ आयोजन

गच्छाधिपति आचार्यश्री उदयप्रभ सुरीश्वरजी एवं आचार्यश्री युगोदयप्रभ सूरीश्वरजी म.सा. की निश्रा में चेन्नई महानगर में पहली बार 16 जैन संघों के संयुक्त तत्वावधान में रविवार को पर्युषण एवं वार्षिक कर्तव्य के तहत विशाल सामूहिक चैत्यपरिपाटी एवं रथयात्रा का आयोजन हुआ। रथयात्रा किलपाॅक स्थित नेमिनाथ ब्रीज जैन संघ से रवाना होकर रंगनाथन एवेन्यू स्थित मुनिसुव्रत स्वामी जिनालय पहुंची, जहां धर्मसभा का आयोजन हुआ। इससे पूर्व सभी 16 संघ चैत्यपरिपाटी करते हुए नेमीनाथ ब्रीज जैन संघ के प्रांगण में पहुंचे।

आचार्यश्री उदयप्रभ सूरीश्वरजी भी चतुर्विध संघ के साथ किलपाॅक मुनिसुव्रतस्वामी जिनालय से रवाना होकर अरिहंत वैकुंठ, नमिनाथ जिनालय, देवदर्शन अपार्टमेंट महावीर जिनालय आदि दर्शन, चैत्यवंदन कर नेमिनाथ ब्रीज जैन संघ पहुंचे। रथयात्रा के दौरान दो रथों में परमात्मा विराजमान थे और श्रद्धालु उन रथों को खींचकर आगे बढ़ रहे थे। रथयात्रा में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने भाग लिया।

धर्मसभा में किलपाॅक श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ के सचिव नरेंद्र श्रीश्रीमाल ने सबका स्वागत किया। उन्होंने भविष्य में भी सभी संघों की एकजुटता पर बल दिया। उन्होंने सभी संघों के प्रतिनिधियों से 7 से 19 दिसंबर को किलपाॅक से काकटूर तक आयोजित छरीपालित यात्रा संघ और 21 दिसंबर से शुरू होने वाले उपधान तप में जुड़ने के लिए प्रोत्साहित करने का आव्हान किया। चंद्रप्रभु नया मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष रमेश मुथा ने संघों की एकजुटता पर खुशी जताई। उन्होंने कहा धर्म के प्रति हमारी भाव भक्ति हमेशा बनी रहे। इस दौरान धर्मसभा में आगम शास्त्रों को सजाया गया और जिन आगम पूजन का कार्यक्रम हुआ।

आचार्यश्री उदयप्रभ सूरीश्वरजी ने आगम का अर्थ समझाते हुए कहा आ यानी जहां से नए आदर्श मिले, ग यानी गौरवमयी कथाएं और म यानी मर्यादापूर्ण जीवनशैली सीखने मिलती है, उसे “आगम” कहते हैं। आगम के कई दूसरे नाम हैं ग्रंथ, श्रुत, सिद्धांत यानी जो आत्मा को शुद्ध बनाए, शुभभावों का उत्कर्ष, दर्शन, सम्यक् ज्ञान आदि। आगम लिखने का काम गणधरों ने किया। बाद में आचार्यों ने इन्हें सूत्रों में पिरोया। ज्ञानी कहते हैं मंत्र, विद्या और पदवी पात्रता बिना नहीं देनी चाहिए। पेंतालीस आगमों में सबसे पहले आचारांग सूत्र लिखा गया। हमारे जीवन की आचार संहिता क्या होनी चाहिए, उसका वर्णन आचारांग में है।

धर्मसभा में संकल्प श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन संघ की ओर से कैलाश कोठारी ने गणिवर्य अर्पणप्रभ विजयजी को पंन्यास पदवी प्रदान समारोह के त्रिदिवसीय कार्यक्रम का लाभ संघ को प्रदान करने की विनंती की। कोयंबत्तूर श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन संघ ने उपस्थित होकर आचार्यश्री के आगामी चातुर्मास की विनंती की। इस दौरान साधारण द्रव्य वृद्धि के लिए सुकृत सर्वसाधारण अक्षय निधि योजना की शुरुआत हुई। यह योजना भारत भर के संघों में चलाई जाएगी। कार्यक्रम में भद्रतप के उग्र तपस्वी विमलाबेन ने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम का संचालन भरत जैन ने किया।

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