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भौतिक सुखों से अधिक आंतरिक सुखों का महत्व : आचार्यश्री महाश्रमण

भौतिक सुखों से अधिक आंतरिक सुखों का महत्व : आचार्यश्री महाश्रमण

तेरापंथ धर्मसंघ के 11वें अधिशास्ता महातपस्वी युगप्रणेता आचार्य श्री महाश्रमणजी ने महाश्रमण समवशरण से संबोधी ग्रंथ के माध्यम से उपस्थित श्रावकों को संबोध प्रदान करते हुए  कहा कि हर प्राणी की आकांक्षा होती है कि वह सुखी रहे और इस दिशा में वह प्रयत्न भी करता है।

कभी-कभी सुख प्राप्त करने के लिए सुविधा का उपयोग करता है और उससे एक समय पश्चात दुख प्राप्त होने लग जाता है क्योंकि सुविधा से क्षणिक सुख मिलता है और फिर वह कष्टकारी हो जाती है। आचार्य प्रवर ने हुए कुएं और कुंड का पानी का उदाहरण देते हुए कहा कि कुएं का पानी आंतरिक सुख के समान है और कुंड का पानी बाहरी सुखों के समान है।

प्रवचन में अणुविभा और सोसाइटी ऑफ इंटरनेशनल डेवलपमेंट के संयुक्त राष्ट्रीय अधिवेशन का शुभारंभ हुआ। इस अवसर पर आचार्य प्रवर ने उद्बोधन देते हुए कहा कि विद्वानों के व्यक्तित्व की अपनी महिमा होती है। उनके तथ्य में वजन हो सकता है। आचार्य महाप्रज्ञ जी के पास कोई डिग्री नहीं थी परंतु उनका ज्ञान का विकास अपने आप में विशिष्ट था।

उनकी संस्कृत भाषा और आगम में विशेष पकड़ थी। इसी के सहारे उन्होंने अनेक जैनागमों का संपादन किया। आचार्य महाप्रज्ञ जी का साहित्य, योग, दर्शन, संस्कृत और अर्थशास्त्र के क्षेत्र में विशेष योगदान रहा है। आचार्य प्रवर ने संबोध प्रदान करते हुए कहा कि पर्यावरण की समस्या में असंयम का विशेष योगदान है।

जैन श्रावकाचार में बाहर व्रतों में पांचवा व्रत है इच्छा परिमाण। व्यक्ति को अपनी संपत्ति या संसाधनों की एक सीमा तय करनी चाहिए। अनावश्यक संग्रह करने वाले को एक चोर की संज्ञा देते हुए कहा कि एक व्यक्ति की वजह से संपूर्ण राष्ट्र को समस्या आती है। अर्थ संपादन में शुद्धि रखी जाए तो व्यक्ति संयम की दिशा में आगे बढ़ जाता है और जीवन में संतुलन को प्राप्त करता है।

अणुव्रत में भी अपरिग्रह की बात कही गई है जिससे अनेक समस्याओं का समाधान होता है। अगर गरीब व्यक्ति नशे पर संयम करें तो वह भी आर्थिक दृष्टि से ऊपर उठ सकता है। नशे से विमुक्त होकर न केवल स्वयं बल्कि अपने परिवार का भी कल्याण कर सकता है।

आचार्य तुलसी की 50 वर्ष पूर्व दक्षिण यात्रा का उल्लेख करते हुए कहा कि उस समय आचार्य तुलसी ने अणुव्रत के माध्यम से कुरीतियों का निराकरण करने का प्रयास किया था। और अनुविभा भी वर्तमान में इस कार्य को कर रही है।

राष्ट्रीय अधिवेशन में भारतीय संस्कृति में आचार्य महाप्रज्ञ के योगदान के विषय में विष्णु इंटरनेशनल संस्थान के स्वामी हरिप्रसादजी, डॉ सोहनराज गांधी, सुविख्यात अर्थशास्त्री सीएस बरला, इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट से श्री श्याम प्रसाद जी, सुप्रसिद्ध दार्शनिक सीएसआर भट्ट ने आचार्य प्रवर के समक्ष अपनी भावों की अभिव्यक्ति दी एवं आशीर्वाद ग्रहण किया।

श्री भट्ट ने आचार्य महाप्रज्ञ जी को रत्नत्रयीधारी बताते हुए राष्ट्र के लिए एक महान व्यक्तित्व बताया। प्रवचन में आर एस एस प्रचारक श्री मधुसूदन, श्री शांतिलाल गोलछा, श्री पोतरामजी एवं श्री मंजूनाथजी ने भी अपनी अभिव्यक्ति दी।

श्री अशोक बाफना ने आचार्य प्रवर से पर्यावरण संबंधित समस्या के लिए जन जागृति लाने का निवेदन किया । प्रवास व्यवस्था समिति बेंगलुरु अध्यक्ष श्री मूलचंद नाहर एवं टीम द्वारा अतिथियों का सम्मान किया गया।

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