बोरीवली में आयोजित हुआ सत्संग और प्रवचन
मुंबई। राष्ट्र-संत चन्द्रप्रभ महाराज ने कहा कि हम अपने भोजन, भाषा, भेष और भावनाओं को अच्छा बनाएं। भोजन को ठीक करने की सीख देते हुए उन्होंने कहा कि कुछ लोग खाने के लिए जीते हैं तो कुछ लोग जीने के लिए खाते हैं। स्वाद के लिए खाना पाप है, जीने के लिए खाना बुद्धिमानी है और संयम जीवन जीने के लिए खाना साधना है। अगर हम घर का बना हुआ खाना खाएंगे तो ज्यादा स्वस्थ रहेंगे और बाजार का खाएंगे तो पेट भी बर्बाद होगा और बीमारियाँ भी फ्री में आएंगी। अगर कोई रसोइयों के हाथों का खाना पाँच दिन लगातार खा ले तो वह गारन्टेड बीमार पड़ेगा। हम हितकारी, सीमित और ऋतु अनुसार भोजन लें। मिठाइयाँ और तली हुई चीजों को सप्ताह में अधिकतम एक बार लें। चुटकी लेते हुए संतश्री ने कहा कि हमारा पेट क्रबिस्तान थोड़े ही है जो आए जैसा डालते जाएं।
संतश्री मां मांगल्य भवन, योगी नगर सर्कल के पास, मेटरो ब्रिज पिल्लर 195 के सामने, लिंक रोड़, बोरीवली वेस्ट में भाई-बहनों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने राजसिक अर्थात् तेल, घी, मिठाई, मिर्च,मसालेदार भोजन और तामसिक अर्थात् दूषित, दुर्गंधित भोजन और माँसाहार से बचने की प्रेरणा देते हुए कहा कि हम घर-घर में शाकाहार का प्रचार करे। शाकाहार करना मंदिर जाने जितना पुण्यकारी है। जो एक मांसाहारी को शाकाहारी बनाता है उसे 68 तीर्थों की यात्रा का पुण्यफल मिल जाता है। उन्होंने कहा कि जब हमें नाखुन चुबाने और इंजेक्शन खाने में भी भयंकर दर्द होता है तो सोचो जिन जीवों पर कटार चलती है उन्हें कितना दर्द होता होगा? व्यक्ति मांसाहार न खाए न खाने दे। जब अहिंसा के विकल्प मौजूद हैं तो मांसाहार कर हिंसा का पाप क्यों किया जाए।
मीठी जुबान से होती है अच्छी पहचान-भाषा को ठीक करने की सीख देते हुए संतप्रवर ने कहा कि बोलने की कला में ही लोकप्रियता का राज छिपा हुआ है। कुछ लोग वाणी के कारण औरों के दिलों से उतर जाते हैं तो कुछ इसी वाणी के चलते औरों के दिलों में बस जाया करते हैं। चेहरे की सुंदरता पाउडर लगाने अथवा होठों की सुंदरता लिपिस्टिक लगाने से नहीं मधुर मुस्कान और मीठी जुबान से होती है। उन्होंने कहा कि आदमी की पहचान परिधान से नहीं, जुबान से होती है। अगर जबान पर घाव लग जाए तो 24 घंटे में ठीक हो जाता है, पर जबान से घाव लग जाए तो ठीक होने में 24 वर्ष भी कम पड़ जाते हैं।
इतिहास इस बात का गवाह है कि जहाँ रावण ने कड़वे वचनों के कारण अपने प्रिय धर्मात्मा भाई विभीषण को खो दिया वहीं विभीषण ने मीठे वचनों से भाई के शत्रु राम को भी अपना बना लिया। इस अवसर पर संतप्रवर ने फटी जिन्स, छोटे कपड़े न पहनने और सुंदर, श्रेष्ठ व सात्विक कपड़े पहनने की सीख दी। उन्होंने स्वयं और औरों के प्रति विचारों और भावों को भी निर्मल, पवित्र और सकारात्मक रखने की प्रेरणा दी।
इस अवसर पर मुनि षांतिप्रिय सागर ने मैं नन्हा सा फूल तुम्हारा चरण षरण में ले लेना, मैं चरणों की धूल तुम्हारी छूकर पाप दूर करना…का मधुर संगान किया। कार्यक्रम में सैकड़ों की तादात में भाई-बहन उपस्थित थे। अंत में सभी ने गुरुजनों से आषीर्वाद लिया।