चेन्नई. विरुगम्बाक्कम स्थित एमएपी भवन में विराजित कपिल मुनि के सान्निध्य एवं श्री एसएस जैन संघ के तत्वावधान में आयोजित अष्ट दिवसीय पर्यूषण प्रवचन माला के तहत सोमवार को मुनि ने कहा श्रमण संस्कृति का चरम और परम उद्देश्य बंधन से मुक्ति प्राप्त करना है ।
इसमें इंसान जीवन के प्रत्येक क्रियाकलाप करते हुए वीतरागता के उद्देश्य को सामने रखकर जीवन यात्रा तय करता है। जीवन में तप त्याग के आदर्शों को सजाने की प्रेरणा लेकर आता है पर्यूषण पर्व। इसका भौतिकता से कोई ताल्लुक नहीं है। जीवन में जो प्रमाद और भूलें हुई हैं उनका संशोधन करना ही इस पर्व का ध्येय होना चाहिए।
भूल करने के लिए कोई वक्त अच्छा नहीं होता और भूल सुधारने के लिए कोई वक्त बुरा नहीं होता। भूल का अहसास होते ही उसका निराकरण कर लेना चाहिए।
आदमी के व्यक्तित्व की पहचान उसके वचन-व्यवहार से होती है। हमारा शब्द प्रयोग और बातचीत का तरीका सभ्य और शालीन होना चाहिए। वाणी ही एक ऐसा माध्यम है जो दूसरों से हमें जोड़ती है। पैसा आपको सुविधा दे सकता है सुख नहीं।
अत: सुख प्राप्ति के लिए पैसे के पीछे बेतहाशा दौड़ते रहने की भूल कदापि न करें। सुख का सम्बन्ध तो सम्यग दृष्टिकोण से है।
अगर दृष्टि सम्यग नहीं है तो परमात्मा भी इंसान को सुखी नहीं बना सकता।
जहां कर्म पल भर में खेल बदल जाता है वहाँ किसी व्यक्ति और वस्तु के प्रति आसक्ति रखना मूर्खता के सिवाय कुछ भी नहीं है। मुनि श्री ने कहा कि अगर जीवन का उत्कर्ष चाहते हो तो स्वयं के प्रति अपने नजरिया को बदलना जरूरी है। इस मौके पर धार्मिक पाठशाला के नन्हे मुन्ने बालकों द्वारा धार्मिक नाटिका का मंचन किया गया। संचालन संघमंत्री महावीरचंद पगारिया ने किया।