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ज्ञान वाणी

भाषा संयमित और विवेकपूर्ण हो: आचार्य महाश्रमण

भाषा संयमित और विवेकपूर्ण हो: आचार्य महाश्रमण
तिरुपुर. आचार्य महाश्रमण के सान्निध्य में आयोजित होने वाले वर्धमान महोत्सव के लिए यहां बने पंडाल में श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि जीवन में भाषा का महत्त्व होता है। जगत में कई प्राणी ऐसे भी होते हैं, जिनमें भाषा की शक्ति प्राप्त नहीं होती। कितने-कितने मनुष्य भी भाषा शक्ति से विहीन होते हैं।
जिन्हें सुन्दर भाषाई शक्ति प्राप्त है वे सौभाग्यशाली होते हैं। आदमी को चाहिए कि अपनी भाषा में संयम और विवेक रखे। भाषा को अच्छा बनाने का सूत्र बताते हुए आचार्य ने कहा कि कम बोलने का प्रयास करना चाहिए। मुखरता, वाचालता छोटा बना देता है। कम और विवेकपूर्ण बोलना चाहिए। बिना बुलाए और अनावश्यक रूप में बोलने से बचने का प्रयास करना चाहिए।
कुछ घंटे के मौन से ज्यादा अच्छा कम बोलना होता है। सच्चाई की ऊंची साधना के लिए भी मितभाषिता आवश्यक होती है। मनुष्य को मिष्टभाषी होना चाहिए। व्यक्ति की कुछ पहचान उसकी भाषा से हो सकती है। इसलिए वाणी मिष्ट और शिष्ट हो, ऐसा प्रयास करना चाहिए।
अयथार्थ बोलने से बचने का प्रयास करना चाहिए। पहले तोलना चाहिए और फिर बोलना चाहिए। इस प्रकार अपनी भाषा को उन्नत बनाने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्य के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा ने भी तिरुपुरवासियों को पावन प्रेरणा प्रदान की। मंगल प्रवचन के पश्चात आचार्य ने तिरुपुरवासियों को अहिंसा यात्रा की अवगति प्रदान कर उन्हें अहिंसा यात्रा के तीनों संकल्पों को स्वीकार करने का आह्वान किया तो प्रवचन पंडाल में उपस्थित श्रद्धालुओं ने सहर्ष संकल्पों को स्वीकार किया।
तिरुपुर तेरापंथ महिला मंडल, व तेरापंथ युवक परिषद के सदस्यों ने अलग-अलग गीतों के माध्यम से अपने भावों को अभिव्यक्ति दी। स्थानीय तेरापंथी सभा के मंत्री जितेन्द्र भंसाली, वर्धमान महोत्सव व्यवस्था समिति के संयोजक प्रकाश दुगड़ व दिगम्बर जैन परिषद के शैलेन्द्र जैन ने अपनी अभिव्यक्ति दी। स्थानीय विधायक के.एन. विजयकुमार ने आचार्य के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त किया।

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