चेन्नई,
साहुकारपेट स्थित श्री जैन भवन में विराजित उपाध्याय प्रवर रवीन्द्र मुनि ने कहा व्यक्ति का सब कुछ ज्ञान और राग पर निर्भर करता है। जिन मिट्टी में मैत्री भाव का प्रभाव होने पर ज्ञान होता है वैसे ही राग के परिहार से साधुता आती है। जीवन में जैसे उजाले के समय में अंधेरा नहीं और अंधेरे के समय में उजाला नहीं होता है। इनको एक साथ करने की अगर व्यक्ति कोशिश करे तो कभी पूरी नहीं होती, क्योंकि दोनों को एक साथ रखना संभव नहीं। अगर व्यक्ति चाहे तो सफेद रंग में काले रंग को मिला सकता है लेकिन उनको कभी भी एक साथ नहीं कर सकता। उसी प्रकार यदि व्यक्ति के जीवन में ज्ञान का सद्भाव है तो राग का अभाव होगा। एक का सद्भाव दूसरे के अभाव का कारण बनता है। जीवन में राग का भाव है तो निश्चय ही उसके जीवन में ज्ञान का अभाव होगा। एक दम राग खत्म होना संभव नहीं होता। राग कोई चीज नहीं है जिसे जब चाहे तब बदल दें। संसार की कोई भी वस्तु को अपनी नहीं मानना चाहिए। ऐसा नहीं है कि ज्ञानी व्यक्ति अपने परिवार के साथ नहीं चलता, उसके साथ चल कर वह अपने भाव में साधुता रखता है। राग का वर्जन करने वाला ही साधु बनता है। आज के समय में लोग इंसानों से कम वस्तुओं से ज्यादा लगाव रखते है जबकि साधुता का भाव रखने वाले कभी भी ऐसा नहीं करते। धर्मसभा में अध्यक्ष आनंदमल छल्लानी ने बताया कि सोमवार को प्रवचन का समय सवेरे ९.१५ बजे से रहेगा।