भौतिक संसाधनों में सुविधा तो होती है पर पूर्ण सुख की प्राप्ति नहीं होती है। भौतिकता में इन्सान को क्षणिक सुख मिलता है और इसी क्षणिक सुख के लिए इंसान अपनी पूरी जिंदगी लुटा देता है, लेकिन जब उसका साक्षात्कार वास्तविकता से होता है तब वह सांसारिक सुख के बजाय अध्यात्मिक सुख की और उन्मुक्त हो जाता है। यह कहना है भारत की प्रसिद्ध धर्म गुरु साध्वी ऋतम्बरा जी का। पिछले कुछ दिनों से चेन्नई में रामकथा का वाचन कर रही साध्वी जी ने सेजवाणी के साथ विशेष साक्षात्कार में बताया की भारत की जड़ें धर्ममय हैं, कोई कितना भी सांसारिक मोह माया के पीछे क्यों न भागे अंत में वह ईश्वर की शरण में ही आता है क्योंकि मोक्ष पाने का यही एक मात्र मार्ग है।
हमारे देश के अधिकांश लोग खासकर के युवा धर्म और अाध्यात्म के बजाय पश्चिमी संस्कृति के प्रति काफी आकर्षित है लेकिन समय बीतने के साथ उन्हें भी यह बात समझ में आ जाती है की त्याग को भोगने से ही वास्तविक सुख मिलता है और यह सुख धर्म के मार्ग पर चलकर प्राप्त होता है। भारत की युवा शक्ति को धीरे धीरे इसकी समझ आ रही है। सहज व्यक्ति की प्रवृति इन्द्रियों की तरफ ज्यादा होती है, स्वछंद होना हर किसी को पसंद होता है, मर्यादा में रहना और आदर्श जीवन सबके लिए संभव नहीं होता है। इसलिए अधिकांश भारतियों का झुकाव पाश्चात्य संस्कृति की तरफ ज्यादा हो रहा है। लेकिन भारतियों को जल्द ही वास्तविकता की समझ आ जाती है और वे अपनी संस्कृति की और वापस लौट आते हैं।
सनातन-अध्यात्म हर दृष्टि से तृप्त हुए लोगों के लिए है
जब भी दुनिया भौतिकता से थकेगी तो वो अध्यात्म की तरफ लौटेगी और भारत का रिश्ता धर्म, अाध्यात्म और ईशभक्ति से काफी पुराना रहा है इसलिए इस बात से कतई इनकार नहीं किया जा सकता की भारत फिर से विश्वगुरु बनेगा। दुनिया थकी हुई है भौतिकवाद और आतंकवाद से इसका एक ही समाधान है अध्यात्मवाद। पूरी दुनिया के प्रश्नों का उत्तर हिमालय और ऋषियों की परम्परा से से मिलता है। जिन के पेट भर जाते है उनको अध्यात्म की भूख लग जाती है और जिनके पेट खाली रहते है वे निरंतर दो जून की रोटी के लिए मेहनत करते रहते है।
धर्म से नियंत्रित राजनीति सही मायने में राजनीति है
मौजूदा दौर में राजनीति में धर्म के प्रयोग पर साध्वी जी ने कहा कि जो राजनीति धर्म से नियंत्रित होती है वही सही मायने में राजनीति है। राजनीति में नीति शब्द धर्म से लिया गया है। सबकी समस्याओं को सुनना और उसका समाधान करना, लोगो की ज़रूरतों को पूरा करना, सबको सुख देना न्याय देना यही तो राजनीति है। धर्म के प्रति सच्ची निष्ठा रखने वाला व्यक्ति ही लोककल्याणकारी राजनीति कर सकता है और जो व्यक्ति राजनीति में आ जाता है वह सबका हो जाता है, वह किसी एक के लिए समर्पित नहीं हो सकता है।
खुद को पढ़कर ही इन्सान अपनी ताकत और दुर्बलता को पहचान सकता है
व्यक्ति को अपने अंदर की ताकत को पहचानना है तो उसे खुद को पढ़ना चाहिए। एकांत में खुद के बारे में चिंतन करे इस चिंतन से ही उसे अपने अंदर की खूबियों और खामियों का पता चलेगा और जब आपको इसकी जानकारी मिल जाती है तो खूबियों को और बढ़ाइए और खामियों को दूर कीजिये। इसी से आपका जीवन सफल हो जाएगा।