रायपुरम जैन भवन में चातुर्मासार्थ विराजित पुज्य जयतिलक जी म सा ने प्रवचन में बताया कि प्रतिमाह दो बार अष्टमी आती है किंतु भादवा मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी जन्माष्टमी कहलाती है।! गुणवान पुरुषों के जन्म से संबंधित यह अष्टमी कृष्ण-जन्माष्टमी मनाई जाती है। जैन धर्म के अंतिम वासुदेव श्रीकृष्ण का आज से 86000 वर्ष पूर्व हुआ। किंतु आज भी उनका जन्म महोत्सव मनाया जाता है!
कल के प्रसंग को आगे बढ़ाते है। कंश मारना नहीं चाहता है! हर जीव यही चाहता है! भगवाग ने आगम में फरमाया है कि सब जीव जीना चाहते है, मरना कोई नहीं। अतः भगवान कहते है किसी भी जीव की हिंसा नहीं करना, विराधना मत करो। भगवान कहते हैं एकेन्द्रीय का वध करने के पश्चात उसमें आसक्ति आ जाय तो वह कर्म भी भयंकर वेदना भोगनी पड़ती है। विवेक रखो अन्यथा यह कर्म भी बड़े दुःख देते है। आगम में एक कथा आती है! खन्धक मुनि ने पूर्व भव में काचरा ऐसे सुधारा की छिलका छोला और भीतर से पुरा गुदा निकाल लिया और बडे ही प्रसन्न हुए और अपनी इस कला का पूरा प्रदर्शन किया। प्रशंसा सुनने में आसक्ति होने से सहज में ही निकाचित कर्म का बंध होता है, और पता नहीं चलता।
उनको भोगते समय बडा ही दुःख भोगना पड़ता है। खन्धक मुनि को भी उस काचरे के जीव का कर्म बंध शरीर के चमडी उघड़वानी पड़ी! खंन्धक मुनि के दिक्षीत होने के पश्चात भी उनके माता पिता ने 500 पहरेदार को गुप्त रूप से लगा रखे थे। किंतु उपसर्ग के समय कोई पहरेदार नहीं थे। पुरन्दर यशा जो खन्धक मुनि की बहन कांचीवरम की रानी थी। वो गवाक्ष में बैठी थी मुनि को देखते ही उसको अपनी भाई मुनी की याद आ गई और आँखों में आँसू आ गए। राजा ने रानी के आँखो में आँसू देखा तो राजा के मन में विभाव आ गया और चंडाल को चमड़ी उधेडने का आदेश दे दिया।
चाण्डाल ने बिना मन ही मुनि को राजाज्ञा कह सुनाई और विनति की। मुनिराज ने चिंतन किया कि मेरे कर्म उदय में आये तो सोचा समभाव से भोग लूं ताकि इन कर्मों से घुटकारा मिल जाएगा। जंगल में जाकर भूमि प्रतिलेखना कर परम शांत भाव से कायोत्सर्ग में लीन हो गये। चाण्डाल ने राजज्ञा का पालन कर दिया। बडे ही शान्त भाव से कर्मों के परिग्रह को सहन किया। कहता है कि पीडा उत्पन्न हो तो मन में अनुकम्पा का भाव रखो। एकेन्द्रीय से पंचेन्द्रिय जीवों के प्रति उनके दुःखो को सोचकर अनुकम्पा भाव लाओ! दया, करुणा, आसक्ति के भाव आ जाये तो कर्मो का बंध नहीं होता है।
आज श्रीमती स्वीटी विशाल कोठारी ने अठाई के पच्छखान लिए। संघ की और से तपस्यार्थी का माला व स्मृति चिन्ह से सम्मान किया गया। कोठारी परिवार की बहनो ने तपस्या अनुमोदना गीत प्रस्तुत किया। संचालन ज्ञानचंद कोठारी ने किया।