सौभाग्य प्रकाश संयम सवर्णोत्सव चातुर्मास खाचरोद
पुज्य प्रवर्तक श्री प्रकाश मुनि जी महारासा-
*बोद्धिदाता दुःखत्राता, आनन्ददाता, सदगुरुम्*
*सौभाग्य गुण सम्पन्नम् श्री सौभाग्य गुरुवे नमः ॥2॥*
श्री सोभग्यमल जी महारासा आप सौभाग्य गुण से संपन्न थे? भाग्य व सौभाग्य में फर्क क्या?
भाग्य-→ पाप-पुण्य का उदय, दोनों भावों का समावेश, आश्रव में दोनों का समावेश पुण्य व पाप भोगता है वह *आश्रव* तत्व दो, पदार्थ विशिष्ट 9, साथ में पूण्य व पाप को डाल दिया। *सौभाग्य* – वह भाग्य जिसमे पुण्य का उदय विशिष्ट पाप का उदय कम, अतिषय पुण्य लेकर जा रहा है, परम सौभाग्य का उदय था। जिसके जीवन में पुण्य ज्यादा पाप का उदय कम हो वह सौभाग्यशाली होता है।
महापुरुषों के जीवन में दुःख भी सुख लेकर आता है।
वे नन्दलालजी मासा. से जुड़े और धर्म से जुडे सोभाग्यशाली।
*जन्माष्टमी*
*कृष्ण महाराज* – कृष्ण वासुदेव थे। पाप का उदय आया जन्म जेल में हुआ नदी ने रास्ता दिया पूण्य प्रबल जिसका प्रबल पुण्य का उदय हे तो देवता भी रोक नहीं सकते ,कोई उसके सामने टिक नहीं सकता, देवता भी सहयोगी बने । *पुण्याणुबंधी पुण्य* से धर्म का मार्ग मिल गया। क्या पुण्य, क्या साधना होगी ! जन्म के पहले मारने की व्यवस्था हो गई थी, अतिषय पुण्य के धनी थे, उनको कोई मार नहीं सकता, चाहे कितना भी प्रयास कर ले मार नहीं सकता, पुण्य के खेल से.. मारने वाले भी सो रहे थे। व्यक्ति एक देखने की दृष्टि दो,, जैन दर्शन बासुदेव शलाका पुरुष( प्रसंसनीय) के रूप में देखते है जो वासुदेव में सबसे पुण्य प्रबल आज भी नाम चल रहा है 85000 साल से उपर हो गये नेमिनाथ भगवान हो गये। उनका जीवन संदेश देता है कि..
1- *दूध की मटकिया फोडना*- इस गांव की चीज पर इसी गांव को पहले खीलाओ , बचे तो फिर दूसरी जगह जाने दो,, दूध की मटकिया फोडी,
2 *माखन खाना*- गोपियों का माखन खाकर दिल चुराया उनका व्यक्तित्व बना लोगों पर नहीं.. लोगो के हदय पर राज किया,
3 *बांसुरी*- *बांसुरी प्यारी की राधा* ,, बांसुरी होठो पर रखते थे क्यो?
बांसुरी में तीन गुण हे एक तो यह सीधी है, बोलाओ तो बोलती है ,जब भी बोलती है मीठा बोलती है।
इसमें संदेश था सीधे रहो, बिना बोलये बोलना नही, मीठा बोलो!
4 *मान का अंत*-उनको मारने के लिए सांड को भेजा वह *मान* का प्रतीक है।
5 *माया का अंत* – पुतना को मारने के लिये भेजा स्त्री को माया का रूप बताया माया, मान का नाश किया।
6 *क्रोध का अंत* -सर्प प्रतीक क्रोध का, क्रोध पर नियंत्रण किया।
क्रोध, मान, माया नहीं की, अपने लिये क्रोध नहीं किया प्रजा की रक्षा के लिये आया।
7 *राग द्वेष का अंत किया* यमलार्जुन दो वृक्ष थे। श्री कृष्ण जी बालक थे बार- बार भाग जाते थे तो माता ने बांध दिया मुसल से, कमर में रस्सी – रस्सी से मुसल धंधा दोनो पेड़ के बीच में गये चलते – 2 वो निकल गये मुसल अटक गया, कोन खिंच रहा है देखा पलट के,, झाड़ में फंसा – लिया झटका, झाड़ नीचे (२० लाख अष्टापद का बल वासुदेव में होता है।) यह दो वृक्ष प्रतीक है राग द्वेष के जुड़वा है। राग है तो द्वेष होगा, द्वेष है तो राग होगा,
8 *लोभ का अंत किया* मल्ल यद्ध किया , पहलवान रूपी लोभ का अंत किया।
*चारों कषाय (क्रोध, मान, माया,लोभ)ओर राग द्वेष को फेंक दिया। प्रतीकात्मक बोध संदेश देता है कि..*वे कर्मशील पुरुष थे ।*
कर्म तो कर फल की ईच्छा मत कर।
*जसमात क्रिया: प्रतिफलन्ति न भाव शुन्या:*
जैसी क्रिया . वैसा फल, कोई क्रीया निरर्थक नहीं होति , फल मांगो तो मिलेगा.. नही मांगो तो भी मिलेगा
9- *भाई का प्रेम* वासुदेव ओर बलराम जैसा किसी का नही, पहले वासुदेव की मृत्यु होती है फिर बलदेव की। मोह की वजह से वह उनके शरीर को जंगल मे लेकर 6 माह तक घूमते है ।
वासुदेव का पुण्य प्रतिवासुदेव से ज्यादा ।
श्री कृष्ण जी का जीवन कर्तव्य प्रधान था , भावना में नही बहे, श्रद्धा से जुड़े,क्षायिक समकित प्राप्त किया।
निर्मल भाव मे चलते रहो यंहा किसी का कोई नही है ,बिना किसी स्वार्थ से कोई जुड़ता नही।
आवश्यकता की पूर्ति मा बाप करे तब तक अच्छे, विषयो की पूर्ति हो तब तक पत्नी अच्छी, कमाऊ पूत सबने वालो लागे..कमाऊ पूत प्यारा लगता है ।
शिक्षा
1अच्छे कार्य करे भूल जाये
2 उल्लास भाव क्षायिक समकित का कारण बनता है
3 कर्तव्य प्रधान जीवन जिये।
4 दान दिया , छोड़ा और भुला
5 निर्मल ध्यान से क्षयिक समकित निश्चित है।