ताम्बरम जैन स्थानक में विराजित साध्वी धर्मलता ने कहा कि भाग्य रथ के दो पहिए है, बुद्धि और पुरुषार्थ। बुद्धि तो पूर्व भव के क्षयोपशम से प्राप्त होती है और पुरुषार्थ से खिल उठती है। पुरुषार्थ के अनुसार ही भाग्य का निर्माण होता है।
उद्यम के द्वारा ही मानव महामानव बनता है। आत्मा से परमात्मा, नर से नारायण और देह से देहातीत बनने के लिए पुरुषार्थ की आवश्यकता होती है। धर्म, अर्थ , काम और मोक्ष ये चार प्रकार के पुरुषार्थ है। धर्म और मोक्ष कल्याण की ओर ले जाते है।
अर्थ और काम संसार के भाव भ्रमण को बढ़ा देते है। सद्पुरुषार्थ की ओर बढ़कर चरम लक्ष्य को पा सकते है। आठ कर्मों का नष्ट हो जाना ही मोक्ष है। उसमें पुरुषार्थ का प्रथम स्थान बताया है। इसलिए पुरुषार्थ सोच समझकर और सही मायने में किया जाए। इस अवसर पर सोनाली लुंकड़ ने आठ उपवास के प्रत्याख्यान लिए।