एएमकेएम में भाईदूज पर्व पर दिया संदेश
एएमकेएम जैन मेमोरियल सेंटर में चातुर्मासार्थ विराजित श्रमण संघीय युवाचार्य महेंद्र ऋषिजी ने भाईदूज के अवसर पर धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि भाईदूज का भारतीय संस्कृति में बड़ा महत्व है। इस पर्व का सबसे बड़ा महत्व है कि यह दिन भाई-बहन के पवित्र रिश्ते के लिए मनाया जाता है। भाईदूज आर्य संस्कृति में वैदिक रुप से दीपावली के नववर्ष के पश्चात आती है। इस दिन बीज के चंद्रमा की कोर दिखाई देती है। उसी कोर के साकार को सिद्धशिला माना गया है। पारंपरिक धारणा यह है कि भव्य आत्मा बीज के दिन दर्शन कर यह धारणा करता है कि महाविदेह क्षेत्र में विचरण कर रहे सीमंधर स्वामी को नमन हो।
उन्होंने कहा हमारा भारतीय समाज चंद्र वर्ष के साथ जुड़ा है। आज की दूज जैन परम्परा में बीज का महत्व भगवान महावीर के निर्वाण से जुड़ा है। नंदीवर्धन और महावीर में अद्भुत प्रेम था। भगवान महावीर का निर्वाण होने के बाद नंदीवर्धन अवसाद में डूब गए। नंदीवर्धन राजा हैं, राज्य का मुखिया माना जाता है। अब जब राजा को अवसाद में डूबा देखा तो ऐसे समय में भारतीय परंपरा का पवित्र तत्व, जिस तत्व ने देश के संस्कारों, समाज को सुरक्षित रखा है। जहां- जहां वासना प्रवेश हो जाती है, उसके कारण जीवन दूषित हो जाता है। इस दूषण से दूर होने का तत्व, वह सामर्थ्य बहन में है।
उन्होंने कहा भाई-बहन का प्रेम वासना रहित होता है। भाई-बहन का प्रेम ही जीवन पर्यंत रहने वाला है। जिसका पुण्य है, उसे ही भाई या बहन है। जिन-जिन के भाई-बहन हैं, वे भाग्यशाली हैं। जीवन में भाई-बहन के इस प्रेम, स्नेह को एक दूसरे के प्रति बढ़ाओ। उन्होंने कहा नारी शक्ति को भावुकता जन्म से मिली हुई है। नंदीवर्धन की बहन भावनाओं पर नियंत्रण करके रह रही है। वह यह तत्व बनकर पहुंचती है। वह नंदीवर्धन को हिम्मत देती है, सकारात्मकता बढाती है, ऊर्जा बनती है। भाई-बहन का एक दूसरे के लिए स्नेह, अपनत्व होना चाहिए। यह अपनापन जिस भाई-बहन में है, वह अद्भुत है। नंदीवर्धन को भी बहन ने शोक से बाहर निकाला। उस बहन के हाथ से नंदीवर्धन ने आहार ग्रहण किया। भाई-बहन के घनिष्ठ संबंध जीवन में कई समस्याओं से बाहर निकालने का स्रोत है।
युवाचार्यश्री ने कहा कि मृत्यु के देवता यमराज ने घोषणा की थी कि जो बहन भाईदूज के दिन भाई की आरती उतारेगी, उसकी अकाल मृत्यु नहीं होगी। इस प्रकार यह दिन भाई-बहन के प्रेम, सुरक्षा और सौहार्द का प्रतीक है। कृष्ण गिरिधर गोपाल कहलाते हैं जिन्होंने गोवर्धन पर्वत को एक अंगुली में उठाया। उस साहस में हजारों की ताकत थी। उन्होंने कहा जो कार्य सबको साथ में लेकर करें, उसका आनंद ही अलग है। वह समाज की एकता को बढ़ाने वाला है। सबको एकसाथ लेकर चलने वाला है। आज का यह पावन पर्व हमारे जीवन में वासना रहित प्रेम का महत्व दर्शाने वाला है।
उन्होंने कहा नियम ही हमारे जीवन का आधार है। जो वृत्ति, नियमों के अनुसार चलता है, उसे अकाल मृत्यु का सामना नहीं करना पड़ता है। समूह के साथ चार कदम भी चले, उसके सामर्थ्य में आनंद रहता है। उन्होंने इस पावन दिवस पर उपप्रवर्तिनी कंचनकंवरजी आदि ठाणा के प्रति मंगल कामना व्यक्त की। इस दौरान राजेन्द्र-ज्योति भटेवड़ा परिवार व बैंगलुरू से गुरुभक्तगण युवाचार्यश्री के दर्शनार्थ व वंदनार्थ पहुंचे। आगामी 6 नवंबर को ज्ञान पंचमी के अवसर पर सरस्वती की विशिष्ट आराधना होगी। 7 नवम्बर को गणेशलालजी महाराज की जन्म जयंती एकासण व दया के रूप में मनाई जाएगी। कमलचंद छल्लाणी ने सभा का संचालन किया।