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भव्य दीक्षा समारोह में दीक्षार्थियों ने स्वीकार किया सन्यास जीवन : आचार्यश्री महाश्रमण

भव्य दीक्षा समारोह में दीक्षार्थियों ने स्वीकार किया सन्यास जीवन : आचार्यश्री महाश्रमण

आज प्रातः काल से ही आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ चेतना केंद्र का महाश्रमण समवसरण हजारों श्रद्धालुओं से जनाकीर्ण नजर आ रहा था। हर कोई आज के इस भौतिक युग में भौतिकता को छोड़ संयम स्वीकार करने वाले दीक्षार्थियों की दीक्षा देखने के लिए उत्साहित एवं उत्सुक नजर आ रहा था।

जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्म संघ के ग्यारहवें पट्टधार आचार्यश्री महाश्रमणजी की पावन सन्निधि में प्रातः 9 बजे नमस्कार महामंत्रोंच्चार के साथ दीक्षा समारोह का शुभारंभ हुआ।

मुख्य उद्बोधन प्रदान करते हुए आचार्य प्रवर ने कहा – आदमी के जीवन में खूब पैसा आ सकता है, समाज में उँच्चे पद और भौतिक चीजें भी जा सकती है परंतु संयम का आना दुर्लभ है। संयम के सामने पैसे, पद, भौतिक संसाधन सब बौने होते हैं, तुच्छ होते हैं। त्याग के द्वारा व्यक्ति शांति को प्राप्त करता है।

आचार्य श्री ने आगे कहा कि व्यक्ति के मन में दीक्षा का भाव जागना अपने आप में विशेष है। कितने ही अवस्था प्राप्त व्यक्तियों के मन में भी दीक्षा लेने का विचार नहीं आता। यह पूर्व जन्म के संस्कार ही है जिनसे मन में साधत्व  स्वीकार करने की भावना उत्पन्न होती है। जिसमें भी जैन तेरापंथ धर्म संघ में दीक्षा लेना विशेष बात है।

 नमोत्थुणम् के पाठ से भगवान महावीर एवं तेरापंथ के प्रथमाचार्य भिक्षु एवं सभी पूर्वाचार्य व आचार्य श्री तुलसी एवं आचार्य श्री महाप्रज्ञ को श्रद्धा वंदन करते हुए आचार्य श्री महाश्रमण जी ने दीक्षा संस्कार के शुभारंभ किया।

आर्षवाणी का वाचन करते हुए गुरुदेव ने समणी हिमांशु प्रज्ञा जी, मुमुक्षु राहुल बोहरा (ज्ञानगढ़-बेंगलुरु), मुमुक्षु कुणाल श्यामसुखा (उदासर-चेन्नई), ग्यारह वर्षीय मुमुक्षु खुश बाबेल (ठीकरवास-चेन्नई), मुमुक्षु आंचल बरडिया (सोजत रोड- बेंगलुरु) को जैन मुनि दीक्षा प्रदान की। तत्पश्चात आचार्यवर ने पूर्व जीवन में लगे दोषों की आलोचना कराई।

दीक्षा संस्कार के तहत आचार्यवर नवदीक्षित मुनियों के केश कुंचन करते हुए चोटी गुरु के हाथ में रहती है उक्ति को सार्थक किया। नामकरण संस्कार में गुरुदेव ने समणी हिमांशुप्रज्ञा का नाम साध्वी हेमंतप्रभा एवं मुमुक्षु आंचल का नाम साध्वी आर्षप्रभा रखा तथा अन्य दीक्षितों के नाम यथावत रखे।

अहिंसा का ध्वज रजोहरण प्रदान करते हुए आचार्यवर ने नव दीक्षितों को प्रेरणा देते हुए कहा  कि संयम जीवन में अब हर कार्य गुरु इंगित के अनुसार करना है। गुरु की आज्ञा ही सर्वोपरि होती है। खाने में, चलने में, बैठने-सोने में हर चीज में संयम हो इसका ध्यान रखना है। कठिनाइयों को सहन करने की प्रेरणा प्रदान की।

इससे पूर्व कार्यक्रम में साध्वी प्रमुख श्री कनकप्रभा जी ने सारगर्भित उद्बोधन प्रदान किया। समणी सुमनप्रज्ञा एवं मुमुक्षु दीक्षा के दीक्षार्थिओं का परिचय दिया। पारमार्थिक शिक्षक संस्था के श्री बजरंग जी जैन ने आज्ञा पत्र का वाचन किया। जिसके बाद दीक्षार्थियों के परिजनों ने आज्ञा पत्र गुरु चरणों में अर्पित किया।

सभी दीक्षार्थियों ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। मंच संचालक मुनि दिनेश कुमार जी ने कहा कि बेंगलुरु की धरा पर आज अनेक कीर्तिमान हो गए है। अहिंसा यात्रा के दौरान बेंगलुरु की धरा पर सर्वाधिक 28 दीक्षाएं हुई है। बेंगलुरु चातुर्मास में अब तक 64 मासखमण हुए हैं।

साध्विप्रमुखा कनकप्रभा जी के  प्रमुखा बनने के बाद अब तक 500 साध्वियों की दीक्षा हो चुकी है। कार्यक्रम में देशभर के कोने-कोने से आए हजारों लोगों की उपस्थिति रही। प्रवास समिति अध्यक्ष मूलचंद जी नाहर, महामंत्री दीपचंद जी नाहर आदि ने श्री हीरालाल जी मालू का सम्मान किया।

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