पुज्य जयतिलक जी म सा ने जैन भवन, रायपुरम में प्रवचन में बताया कि भव्य जीवों को संसार सागर में तिरने के लिए प्रभु ने जिनवाणी रूपी गंगा प्रवाहित की। दो प्रकार के धर्म बताए श्रुत धर्म और चारित्र धर्म अहिंसा धर्म का दृढ़ता पूर्वक पालना करने वाले अणगार और अहिंसा धर्म का कुछ छुट के साथ पालन करने वाले आगार।
आगार धर्म का दूसरा व्रत साथ है। सत्य व्रत में भी जीव हानि की आशंका होती है! बड़ा झूठ जीवन में कभी नहीं बोले ! इसको जीव की हिंसा हो जाती है। अनर्थ हो जाता है। छोटा झूठ बोलन का भी विवेक रखो! किसी जीव को बाधा नहीं आए ऐसा सोच समझ कर बोलो। सत्य बोलना सरल है उसमें उलझने की संभावना नहीं है। असत्य बोलना कठिन है! आप उलझ सकते है! एक झूठ के पिछे हजार झूठ बोलना पड़ सकता है! उस पर विश्वास हट सकता है। जैन धर्म सत्य बोलने का परमिट देता है। छोटा झूठ बोलना भी आवश्यक नहीं है! सत्य से एकता बनी रहती है घर में, समाज में, यहाँ तक किसी को भी झुठ बोलने की प्रेरणा भी नहीं देनी चाहिए! झुठ बोलने से मरण तुल्य वेदना हो सकती है। विवाह रिश्ते आदि भी सत्य बोले, जो जैसा है वैसा प्रस्तुत करो।
इसमें बात बिगड़ने की संभावना नहीं रहती है। संतान संबंधी झूठ नहीं बोले ! किसी भी अन्य कन्या का भी जीवन बर्बाद नहीं करे। किसी भी बात को छीपाएँ नहीं। निकाचित कर्म नहीं बांधे। वर्ना दर दर की ठोकरे खानी पड़ती है ! किसी के भी जीवन को नष्ट नहीं करे। रिश्ते अपने पुण्यवानी को बंधते है। हमें बीच में बोलने की जरूरत नहीं।
दूसरा अतिचार है “गोवालिए”। गाय संबंधी झुठ नहीं बोले! पुराने जमाने में गरीब के घर में भी एक गाय होती थी! दूध, दही छाछ की लीला लहर रहती! यहाँ तक प्रभु का पारणा भी खीर से हुआ। आज आपको गाय तो में नहीं रखनी । किंतु गाय का दूध चाहिए! मिलावटी दूध आता है आज दूध की हर चीज में मिलावट होती है। अगर गाय घर में हो शुद्ध दूध मिल सकता है। अगर गाय बेचनी खरीदनी है तो सत्य बोले। अन्यथा गाय को आगे कसाई खाने में भेजी जा सकती है। और हमें निकाचित कर्म का बंध हो सकता है इसी तरह गाय, भैंस कोई भी पशु हो उनके संबध में झूठ नहीं बोलें ! अनर्थ के कर्मों से बचे! अपनी आत्मा का उत्थान करें। सत्य बोले किंतु कटु सत्य न बोले।
लगंडे को, अंधे को, काने को वैसे संबोधन से न बोले। बल्कि राजस्थान में चोर तस्कर को भी “बावजी” कहा जाता है! यहाँ तक कुत्ते को भी नहीं कहते, बल्कि “भंण्डारी” कहा जाता है! किसी को भी अच्छे शब्दो से संबोधन करे! प्रभु ने श्रावक श्राविका को भी “देवाणुप्रिय” शब्द से संबोधन करते थे। यदि अपने सत्य से किसी भी जीव की हिंसा होती है तो मौन हो जाओ! खडे हो तो बैठ जाओ, बैठे हो तो खड़े हो जाओ और विवेक पूर्वक जबाब दो! सेठ सुदर्शन को राजा ने पूछा तुम क्यों मेरे अंतपुर में आये ! सेठ ने मौन धारण कर लिया मौन को सत्य मान कर शुली का आदेश दिया। उनके शील प्रभाव से शुली का सिंहासन हो गया। सेठ सुदर्शन प्राण छोडने तैयार हो गये। किंतु कटु सत्य बोलना स्वीकार नहीं। क्रोध वश, ईर्ष्या वश, माया वश आदि से झूठ नहीं बोलना। निकाचित कर्म का बंध होता है। सत्य बोलने से सदाकाल सत्य की जीत होती है।
यह जानकारी प्रचार प्रसार मंत्री ज्ञानचंद कोठारी ने दी ।