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ज्ञान वाणी

भय ही संग्रह का कारण, इसका त्याग करें:  उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि

भय ही संग्रह का कारण, इसका त्याग करें:  उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि

चेन्नई. बुधवार को श्री एएमकेएम जैन मेमोरियल, पुरुषावाक्कम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि एवं तीर्थेशऋषि महाराज ने पुच्छीशुणं का पाठ कराया।


उपाध्याय प्रवर ने कहा कि सुधर्मास्वामी भय और अभय का रहस्य खोलते हुए पुच्छीशुणं में कहते हैं कि जिस बात से व्यक्ति को डर लगता है उधर देखना, जाना और सोचना बंद कर देते हैं और उस भय को दूर करने के दरवाजे भी बंद हो जाते हैं। इसी कारण से हम समस्या को और समाधान को भी नहीं देख पाते हैं।

कल की टेंशन होने पर हम परिग्रह करते हैं। कल को मिलेगा या नहीं यह भाव मन में भय जाग्रत करता है और संग्रह की प्रवृत्ति बढ़ जाती है। यह निकल जाए तो हम संग्रह और परिग्रह नहीं करते हैं। कौन जानता है कल क्या होगा।

परमात्मा इस भविष्य के भय से मुक्त हो गए हैं। चंडकोशिक के पास जाने से लोग डरते थे और वहां जाने के सारे रास्ते बंद हो गए थे। परमात्मा ने उन रास्तों पर जाकर चंडकोशिक का भय लोगों के मन से दूर किया। आदमी भय से मरता है, सत्य से नहीं। भय ही सबसे भयंकर है।

भयभीत व्यक्ति स्वयं को भी मारता है और दूसरे को भी। मृत्यु का भय होने पर व्यक्ति उससे डरता है कि आगे क्या होगा। संलेखना लेनेवाले के मन में मृत्यु का भय नहीं होता है कि यह शरीर छूटेगा तो दूसरा तो मिलेगा ही और वह शांतिपूर्वक जाता है।
मन में डर न होने के कारण ही परमात्मा प्रभु न तो वस्तु को पकड़कर रखते हैं और न व्यक्ति को।

जिनकी प्रज्ञा तीव्र होती है वे कभी संग्रह नहीं करते हैं। जो कल मेरे पास नहीं था वह आज मिला है और जो आज नहीं है वह कल मिल सकता है। जो आज मेरे पास है वह कल मेरे पास रहना जरूरी नहीं है। ऐसी सोच वाले व्यक्ति आसक्ति और बुद्धि की पकड़ छोड़ देते हैं।

परमात्मा कहते हैं कि भय के कारण सारे चक्षु बंद हो जाते हैं। अपने बच्चों के मन में कभी डर न आने दें। बच्चों को डराकर पढ़ाने से वे कभी ठीक से पढ़ नहीं पाते हैं, न याद रख पाते हैं और उनका मन-मस्तिष्क का विकास रूक जाता है।
जीवन में यदि नियम और पच्चखान का समावेश हो तो उसकी सद्गति गति पक्की है। बुराइयों के त्याग के नियम होने आवश्यक है।

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