गौतमकिरण परिसर में पारणोत्सव हुआ सानंद संपन्न
महानगर के छह विभिन्न जैन संघों के तत्वावधान और गच्छाधिपति आचार्यश्री उदयप्रभ सूरीश्वरजी की पावन निश्रा में भद्रतप की पूर्णाहुति के उपलक्ष्य में आयोजित महोत्सव के तीसरे दिन रविवार प्रातः तपस्वियों के सम्मान में भव्य वरघोड़ा निकाला गया। यह वरघोड़ा केएलपी अभिनंदन अपार्टमेंट से प्रारंभ होकर एटकिंसन रोड़ स्थित गौतमकिरण परिसर में पहुंचा, जहां तपस्वियों का राजशाही पारणोत्सव आयोजित किया गया।
भद्रतप की सौ दिवसीय आराधना, जिसमें 75 उपवास और 25 बियासना शामिल है, को देखकर प्रतीत होता है कि यह एक पहाड़ के जैसी साधना है लेकिन इस पहाड़ के शिखर पर सफलतापूर्वक पहुंचने का कार्य जो करते हैं, वे कर्मवीर कहलाते हैं। उन कर्मवीरों की अनुमोदनार्थ वरघोड़े में शामिल हुए हजारों की संख्या में श्रद्धालु उनके सामने नतमस्तक थे और उन कर्मवीरों के चेहरों की चमक यह बताने में समर्थ थी कि स्वयं के विरुद्ध छेड़े गए इस युद्ध में वे विजयी बनकर सबके सामने आए हैं।
वरघोड़े में बैंड-बाजों की स्वर लहरियां, युवाओं का शंखनाद, युवतियों के बैंड की धुन और युवावर्ग द्वारा लगाए जयकारे वातावरण को गूंजायमान कर रहे थे। बग्घियों और खुले सुसज्जित वाहनों में विराजित ये कर्मवीर सभी श्रद्धालुओं का अभिवादन स्वीकार कर रहे थे। पालकी में विराजित आचार्य भगवंत और हंस की चाल से गतिमान साधु- साध्वीवृंद सुशोभित हो रहे थे। इसके साथ ही परमात्मा के रथ को खींचते और चंवर लहराते श्रद्धालुगण वरघोड़े में दृश्यमान हो रहे थे। गौतमकिरण परिसर में पहुंचने के बाद श्रद्धालुगण उन 211 तपस्वियों को पारणा करने हेतु आतुर दिखाई दिए।
मात्र सोलह वर्ष की आयु में भद्रतप की पूर्णाहुति करने वाले तपस्वी प्रियम सुजानी से हमारे प्रतिनिधि ने मुलाकात की और इस कठिन कर्मयुद्ध में विजयी होने का राज पूछा तो उन्होंने परिपक्वता और सरलता से जवाब दिया कि यह देव- गुरु की कृपा से संभव हो पाया। उन्होंने अपनी माता को प्रेरणास्रोत बताया। वे इससे पहले भी पौषध के साथ अठाई की तपस्या कर चुके हैं। हिंदू क्षत्रिय परिवार में जन्मे आंध्रप्रदेश के तिरुमल भाई ने भी भद्रतप पूर्ण किया। उन्होंने बताया कि उनके पहले के जीवन में बुरे अनुभव रहे हैं। वे अपनी जीवनलीला को समाप्त करने की ओर बढ़ रहे थे, तब जैन अनुयायियों के संपर्क में आए और उन्हें जैनदर्शन में विशेष रुचि पैदा हुई।
वे पिछले वर्ष उपधान- तप और आयंबिल की छह ओलियां भी पूरी कर चुके हैं। उनका मानना है कि जैन धर्म इस विश्व की जटिल समस्याओं का समाधान करने में सक्षम है। 47 वर्षीय भद्रतप की तपस्विनी बबीता पारख दिव्यांग महिला है। उसके बाद उनको पैर में फ्रैक्चर हो गया। उन्होंने बताया कि वह बारह वर्ष तक गंभीर बीमारी से भी पीड़ित थी। उन्होंने अपने मनोबल से दो उपधान तप, मासक्षमण, सिद्धितप, धर्मचक्र तप आदि किए हुए हैं और तप के प्रभाव से उनकी बीमारी खत्म हो गई। वह कहती है विकलांगता तो उनके कर्मों के कारण है। उनको गुरु भगवंतों, अपने पति एवं बच्चों से प्रेरणा मिली है। महोत्सव के अवसर पर प्रातःकालीन नवकारसी का आयोजन किया गया। महोत्सव की व्यवस्थाओं में तमिलनाड जैन महामंडल का सराहनीय योगदान रहा।