करुणा के सागर भगवान महावीर ने भव्य जीवों सागर से तिरने मोक्ष मार्ग का उपदेश दिया ! जिनवाणी रूपी गंगा प्रवाहित की! सम्यक दर्शन ज्ञान चारित्र मोक्ष मार्ग का उपदेश दिया। दर्शन सम्यग होगा तो ही ज्ञान और चारित्र भी सम्यग होंगे।
अतः दर्शन विशुद्धि ही प्रमुख है! गौतम गणधर का ज्ञान दर्शन, चारित्र तीनो अशुद्ध थे। किंतु भगवान महावीर की वाणी से अन्तर के कषाय शांत हो गय! दर्शन प्रकट हो गया प्रभु के चरणों में नतमस्तक हो गये। भगवान पर तीव्र प्रशस्त से केवलज्ञान की उपलब्ध नहीं हो रही थी! प्रभु से पृच्छा करते है मेरे पश्चात दिक्षित संत को केवल ज्ञान हो जा है किंतु मुझे नहीं! भगवान फरमाते है मेरे प्रति राग को छोड़ दो। तुम्हारे धाती कर्म क्षीण हो जायेगा। गौतम, गणधर कहते है आपको छोड़ना पड़े तो ऐसा केवलज्ञान मुझे नहीं चाहिए। तीर्थकर के प्रति राग हो तो भी मोक्ष मार्ग में बाधा है। यदि संसार के प्रति राग है तो क्या उन्हे मोक्ष हो सकता है वह तो अप्रस्त राग है। राग द्वेष से गंतव्य अवरुद्ध होता है!
जब भगवान महावीर का निर्वाण समय निकट आया तो उन्होंने गौतम के राग को तोड़ने के लिए, आर्ध रौद्र ध्यान को तोडने के लिए देव शर्मा ब्राह्मण को बोध देने भेज दिया। प्रभु की आज्ञा शिरोधार्य बनी। पावापुरी में निर्वाण मेला लग गया। नो मल्लवी लिच्छवी राजा से प्रभु की आज्ञा शिरोधार्य कर अष्टम पोषध को अंगीकार कर लिया! यह दिन ही संदेश देता है! पाप से निवृत होकर आत्मज्योत जगाओ । सामान्य जन दिपावली के नाम से मन की सफाई बिना बाध्य कचरा साफ करते है! साल भर में नहीं होने वाली क्रिया दिपावली के समय करते हो। यह दीप बाह्य है भीतरी द्विप जलाओ जिससे आत्मा उजगर होगी! जिसका अनुसरण करना चाहिए उसको छोड़ दिया! अभी तक पूर्ण रूप से विवेक जागृत नहीं हूआ।
जिस दिवाली का दिन पर्व समय में मनाओगे त्यौहार रूप में नहीं! उस दिन आपका जीवन सफल होगा। भगवान ने अपने अंतिम समय में जीव मात्र को माता पिता के संदेश की सदशिक्षा दी! जब तक शरीर में प्राण थे उपदेश देते रहे वो भी खड़े खड़े! संसार सागर को तारने का पुरषार्थ किया। जब निर्वाण हुआ तो देव ददुंभी बजने लगे! आवाज सुनकर गौतम गणधर को झटका लगा “अहो” मेरे प्रभु ने मुझे छोड़ दिया और बालक की तरह बिलखने लगे। प्रभु क्यों मुझे इतनी दूर भेज दिया? मैं क्या आपके पाँव पकड़ लेता आपका पल्लू पकड़ लेता क्या आपके मुक्ति में बाधा आ जाती।
चिन्तन से पलटा खाया ! चिन्तन की धारा आत्मोन्मुखी हो गई। प्रभु तो मोक्ष पधारे है यह , तो नियति, थी! यदि मेरे इस मोहनीय कर्म को छोड़ दूँ ! प्रभु भी तो यहीं कहते थे! बस चिंतन बदला मोहनीय कर्म टूटा और केवल ज्ञान प्रकटा। एक सूर्य अस्त हुआ तो दुसरा सूर्य उदित हो गया। हर्ष की लहर छा गई। प्रभु के पाट पर सुधर्मास्वामी विराजमान हुए। आज का दिन बड़ा ही महत्वपूर्ण है! नव वर्ष मे धर्म ध्यान में आगे बढ़ना है। धर्म का संकल्प करने का दिन है! आत्मा अकेली आई है अकेली जायेगी।
भगवान महावीर, गणधर गौतम की तरह मैं भी इस संसार से प्रयाण करूं यह भावना होनी चाहिए। इस धर्मसभा में आए हो तो ज्ञान, दर्शन, चारित्र को धारण करो। भगवान का निर्वाण, गौतमस्वामी का केवलज्ञान और सुधर्मा स्वामी के पाट विराजमान का दिवस है! तीन तीन शुभ अवसर है! इस शुभ दिन धर्म का संकल्प ले! मोह को तोड़ने का संकल्प करे, क्षीण करो। नया वर्ष सुगम बने, धर्म की ज्योत जगाए। संसारिक सुख मे के साथ आत्मा के उत्थान का भी संकल्प करो! यह पर्व आत्म पुरुषार्थ कराने के लिए आया है।