पर्यूषण पर्व का आज सातवां दिन, साध्वियों ने कहा कि कर्मों का फल तीर्थंकरों को भी भोगना पड़ता है
Sagevaani.Com @शिवपुरी। पर्यूषण पर्व के सातवे दिन प्रसिद्ध साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ, 22वे तीर्थंकर भगवान नैमीनाथ, 23वे तीर्थंकर भगवान पाश्र्वनाथ और अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर के जीवन चरित्र को चित्रित करते हुए कहा कि कर्मों का फल सभी को भोगना पड़ता है। भगवान महावीर साधना काल में कई बार जेल गए।
उन्हें फांसी पर भी लटकाया गया। अनार्य भूमि में विचरण करते समय उन्हें यातनाओं का सामना करना पड़ा। संगम देव ने एक रात में उन्हें 20 उपसर्ग दिए। साध्वी रमणीक कुंवर जी ने बताया कि 30 वर्ष की उम्र में दीक्षित भगवान महावीर को 42 वर्ष की उम्र में केवल्य ज्ञान प्राप्त हुआ और 72 वर्ष की उम्र में उन्हें निर्वाण हुआ। साध्वी जयश्री जी ने सुंदर भजन का गायन किया।
साध्वी नूतन प्रभाश्री जी ने बताया कि भगवान महावीर का साधना काल 12 वर्षों का रहा और साधना काल में उन्होंने आर्य भूमि के साथ-साथ अनार्य भूमि में भी विचरण किया और वहां चातुर्मास किए। अनार्य भूमि में उन्हें काफी यातनाएं भुगतनी पड़ीं, लेकिन वह विचलित नहीं हुए। भगवान महावीर स्वामी ने कठोर तपस्याएं कीं। एक बार उन्होंने 5 महीने और 13 दिन तक उपवास किया। उन्होंने संकल्प लिया था कि जब तक उनके 13 अभिग्रह पूर्ण नहीं होंगे तब तक वह आहार नहीं लेंगे। संकल्प पूर्ण होने पर उन्होंने चंदनवाला से उड़द के बाफले ग्रहण किए।
42 वर्ष की उम्र में उन्हें केवल्य ज्ञान प्राप्त हुआ। उनकी प्रथम देशना विफल रही, लेकिन दूसरी देशना में श्रावक श्राविका, देवी और देवता सभी शामिल हुए। संगम देव ने उन्हें लगभग छह माह तक उपसर्ग दिए, लेकिन प्रभु विचलित नहीं हुए। थक-हार कर जब संगम देव वहां से जाने लगा तो भगवान महावीर की आंखों में आंसू आ गए। वह अपने कष्ट से पीडि़त नहीं थे, बल्कि इस बात से दुखी थे कि संगम देव को अपने कर्मों का फल भोगना पड़ेगा और उन्हें कभी मोक्ष नहीं मिलेगा। साध्वी जी ने भगवान पाश्र्वनाथ, नैमीनाथ और आदिनाथ के जीवन पर भी संक्षिप्त रूप से प्रकाश डाला। कल आराधना भवन में क्षमावाणी पर्व मनाया जाएगा।