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भगवान महावीर निर्वाण दिवस पर आचार्यप्रवर का विशेष उद्बोधन

भगवान महावीर निर्वाण दिवस पर आचार्यप्रवर का विशेष उद्बोधन

तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता-शांतिदूत-अहिंसा यात्रा के प्रणेता-महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने अपने मंगल उद्बोधन में फरमाया कि जो व्यक्ति सहन कर सकता है वही अहिंसा की आराधना कर सकता है। सहिष्णुता के बिना अहिंसा को आत्मसात करना कठिन होता है।

जीवन में कठिनाई आ सकती हैं, शारीरिक एवं मानसिक प्रतिकूलता आ सकती है। दोनों प्रतिकूलताओं को सहन करने का साहस होने पर अहिंसा की आराधना अच्छी तरह की जा सकती है। कार्तिक अमावस्या भगवान महावीर के निर्वाण के साथ जुड़ी हुई है। इस दिन भगवान ने अपने नश्वर शरीर को त्याग कर मोक्ष का वरण किया था।

भगवान महावीर के जीवन में अनेक उपसर्ग आए। उन्होंने सहिष्णुता से हर उपसर्ग को सहन किया। जो व्यक्ति सहिष्णु होते हैं उनके लिए कष्ट भी अकष्ट हो जाता है। भीरू व्यक्ति कठिनाई से डर जाते हैं और उनके लिए छोटी कठिनाई भी बड़ी बन जाती है। क्षमाशील और सहिष्णु व्यक्ति के लिए कोई कठिनाई बड़ी नहीं होती है। जीवन में कुछ समस्याएं ऐसी होती है जो एक के लिए कठिन होती है परंतु दूसरे के लिए सरल हो सकती है।

आचार्य प्रवर ने केशलुंचन का उदाहरण देते हुए बताया कि सामान्य व्यक्ति के लिए केश लुंचन दुष्कर होता है परंतु साधु के लिए वह एक सामान्य बात है। इस आधार पर उन्होंने कहा कि अभ्यास से सहिष्णुता बढ़ सकती है। यह अभ्यास साध्य होती है। भगवान महावीर ने अपने पूर्व जन्मों में भी अनेक कष्ट सहे थे। उनका साधना काल लगभग 12 वर्ष गृहस्थ जीवन लगभग 30 वर्ष रहा। इस दौरान उन्होंने हर कठिनाई, हर उपसर्ग को सहिष्णुता से सहन किया।

 आचार्य प्रवर ने आगे फरमाते हुए कहा कि व्यक्ति का महान होना उसकी उम्र पर निर्भर नहीं करता है। सब महापुरुषों के आयुष्य लंबा नहीं होता परंतु वह अपने कार्यों के द्वारा अपने जीवन में किये कार्यों के द्वारा महानता को प्राप्त कर लेते हैं। भगवान महावीर के बारे में उन्होंने फरमाते हुए कहा कि उनको चाहे चंण्डकौशिक सर्प द्वारा उपसर्ग मिला या चाहे इंद्र ने उनको नमस्कार किया परंतु भगवान महावीर हर परिस्थिति में सम रहे। उन्होंने समता की अविरल आराधना की।।

भगवान महावीर के द्वारा जो सिद्धांत दुनिया को प्रदान किए आज वह हर व्यक्ति के काम आ रहे हैं। जैन शासन को अहिंसा, अनेकांतवाद, संयम  के महत्वपूर्ण सिद्धांत प्रदान मिले। अनेकांत एक ऐसा सिद्धांत है जिससे व्यक्ति का दृष्टिकोण सम्यक बन जाता है। जहां दुराग्रह होता है वहां सम्यक ज्ञान का अभाव होता है सदाग्रह से ज्ञान का मार्ग प्रशस्त हो जाता है। आचार्य प्रवर ने उपस्थित व्यक्तियों को प्रेरणा प्रदान करते हुए कहा कि व्यक्ति को अपने नियम नहीं तोड़ने चाहिए और जीवन समता की निरंतर आराधना करते रहना चाहिए।

दीपावली महापर्व के अवसर पर आचार्य प्रवर द्वारा विशेष मांगलिक प्रदान की गई जिसमें देश-विदेश से हजारों व्यक्तियों की उपस्थिति रही। प्रवचन में आचार्य महाप्रज्ञ जन्म शताब्दी अवसर पर आचार्य महाप्रज्ञ पर रचित दो पुस्तकें “बॉडी एंड सौल” और “युगपुरुष महाप्रज्ञ” का विमोचन श्री धर्मचंद लुंकड़, श्री मूलचंद नाहर आदि द्वारा किया गया।

मुख्य नियोजका साध्वी श्री विश्रुत विभा जी  एवं शादी उदितयशा जी ने इन पुस्तकों के विषय में अपने विचार व्यक्त किए। प्रवचन में कृतज्ञता ज्ञापन करने के क्रम में तेयुप बेंगलुरु अध्यक्ष श्री रोहित कोठारी, श्री शांतिलाल छाजेड़ , श्री विमल श्यामसुखा, श्री ललित मांडोत ने अपने भाव व्यक्त किए।

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