पर्युषण के पांचवे दिन भगवान महावीर के जन्मोत्सव पर बोलते हुए डाक्टर राजेन्द्र मुनि जी ने महावीर के अंनत उपकारों का वर्णन किया आज जो भी जैनधर्म का स्वरूप दिखलाई दे रहा है! अहिंसा सत्य क्षमा शाकाहार दया दान पुण्य अनेकान्त वाद अपरिग्रह वाद मानववाद ये सभी शिक्षाएं हमें महावीर की बदौलत प्राप्त हुई है! यधपी महावीर का जन्म चेत सुदी तेरस के दिवस हुआ फिर भी आज के दिवस भी उनको स्मरण वन्दन किया जाता है! महवीर वाणी को ही आगम वाणी कहा जाता है! इन आगमो का पठन पाठन ही वस्तुत : स्वाध्याय सामायिक कहा जाता है!
महावीर के तप धर्म का विवेचन करते हुए मुनि जी ने जैन धर्म का दूसरा नाम तप धर्म बतलाया! जो कठोर तप जप ध्यान साधना प्रभु वीर ने की वो बेमिसाल है!सम्पूर्ण जगत जैन धर्म के इस अखण्ड तप से अचम्भइत है! एक दिन के उपवास से लेकर सेकंडो दिवस गर्म पानी के आधार पर कई भक्तजन आज भी दृढ संकल्प से इस तप को पूर्ण करते है! पूर्व समय मे राजा जन भी पोषध व बेले तेले तप की आरधनाएं कर के सफलता प्राप्त करते थे! जो कर्मों का क्षय कर देता है! जो शरीर के साथ मन को भी तपा देता है जिससे आत्मा परिशुद्ध होती है जो नाना प्रकार के सदगुणो को जीवन मे प्रकट करता है जिससे अशुभ विचार शुभ मे परिणत हो जाते है वही तप का सच्चा स्वरूप है!
सभा मे साहित्यकार सुरेन्द्र मुनि जी द्वारा अंतगढ़ सूत्र के स्वाध्याय के द्वारा सभी को धर्म आरधना की प्रेरणा दी! महावीर जन्म स्वरूप शान्ति लाल जी का पौत्र महावीर बालक बनकर हर्ष मनाता है! जन्म के विधि विधान के अनुसार बालक को झूले मे झूलाना दान पुण्य करना, आपस मे बधाइयां देना, प्रसाद वितरण करना आदि कार्य कराए जाते है! अन्त मे महामंत्री उमेश जैन द्वारा सभी को हार्दिक बधाइयां व सूचनाएं प्रदान की गई!