यस जैन संघ नार्थ टाउन में चातुर्मासार्थ विराजित गुरुदेव जयतिलक मुनिजी ने प्रवचन में फरमाया कि भगवान महावीर की वाणी सभी जीवों के लिए कल्याणकारी है। जिनवाणी कहती है सावध्य प्रवृतियों का जीवन पर्यन्त के लिए त्याग करो।
जो ऐसे करता है वह मन-वचन, काया से किसी को कष्ट नहीं देता। जिनवाणी को दिव्य रूप कहा है क्योंकि ये सबका कल्याण कराती है, धर्म का मार्ग प्रशस्त कराती है, जीव जब तक अपनी शक्ति को नहीं पहचान लेता तब तक वह अष्ट कर्मो से मुक्त नही हो सकता। संसार की सभी वस्तुएँ विनाश को प्राप्त होगी पर आत्मा को कोइ भी शक्ति छिन्न भिन्न नहीं कर सकती। आत्मा मे अनन्त शक्ति है पर कर्मो का आवरण आत्मा को कमजोर करता है भगवान कहते हैं कर्मों के आवरण को हटाने का पुरुषार्थ करो।
सांसारिक व्यक्ति कर्म को आत्मा सें ज्यादा शक्तिशाली मानती है, और कर्मों के आगे घुटने टेक देती है। पर भगवान कहते हैं कर्मों से डरो मत कर्म निर्जरा का पुरुषार्थ करो। कर्म उदय में आने पर उन्हे समभाव से भी कर छुटकारा पाया जा सकता है। आगमों में अनेक कई महापुरुषों का उल्लेख है जिन्होंने कर्मो को परास्त किया है उनके बारे में सुनकर भी हम कर्मों से डरते यही कर्मों के आगे अपने को हीन माना तो कर्में की गुलामी से मुक्ति नहीं मिल पायेगी कर्म से लडने के लिए हमें मानव जीवन मिला है।
जिनके निर्वाचित कर्म नहीं बंधे है। वे सुखपूर्वक मोक्ष में चले जाते है अतः ऐसे पीडाकारी कर्म को बन्ध मत करो जिससे दुखपूर्वक मोक्ष में जाना पडे। ये आप पर निर्भर है, आपको चिन्तन करना है कि दुख या सुखपूर्वक मोक्ष में जाना है। किसी को पीडा नहीं देना किसी के प्राणों का धात नहीं करना, किसी को हानि नहीं पहुंचाना आदि इन बातो का ध्यान रख लिया जाये तो अधिक दुख नहीं भोगने पड़ेंगे जैसे संसार में यात्रा करने के अनेक साधन है।
वैसे ही भगवान ने मोक्ष में जाने के अनेक साधन बताये है। मोक्ष में जाने के लिए सावध्य प्रवृति से निवृत होना पड़ेगा अपनी शक्ति को दूसरो की पीड़ा पहुंचाने में मत लगाओ अन्यथा निकाचित कर्मों का बन्ध होगा। जीव को चार घाती कर्मों से ही लड़ना है उपचार में भी मोह कर्मों को जीतना है शेष तो अपने आप ही क्षय हो जायेगें । जिनवाणी कहती है संसार से बाहर निकलो कर्मों को तोड़ो जो सकल्प कर लेता है संसार से निकलने का वह अवश्य ही मोह कर्म आदि अन्य कर्मो को जीत लेता है।
जैसे जाली कुमार ने संसार का रूप जान लिया और दीक्षा की आज्ञा मांगी पर उनके पिता उन्हें रोकते है। वैसे ही जो परिवार आज दीक्षा लेने में रोकता है वही बाद में दुख देने का कारण बनते है इसलिए कोई दीक्षा लेना चाहे तो उसमें बाधा मत डालो धर्म के मार्ग में आगे बढ़ने दो अन्तराय मत दो , हंसी खुशी स्वीकृति दो। क्योंकि संसार में सुख नही है। संसार छोड़ने का मौका मिले तो विलम्ब मत करो।
अशोक कोठारी ने बताया कि चातुर्मास में प्रतिदिन दोपहर एक से तीन बजे तक नार्थ टाउन में संघ के सदस्यों के घरों में नवकार जाप होता है।