चेन्नई. कोंडीतोप स्थित सुंदेशा मूथा भवन में विराजित आचार्य पुष्पदंत सागर ने कहा छाता बरसात को नहीं रोक सकता पर वर्षा के पानी से बचा सकता है। एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने का हौसला बढ़ सकता है। एक स्थान पर धैर्य से खड़ा रख सकता है। इसी प्रकार पूजा, भक्ति, परमात्मा की आराधना, सत्संग, स्वाध्याय हमारे दुखों को कम तो नहीं कर सकते पर उन्हें सहन करने की क्षमता जरूर देते हैं।
समता भाव को, विवेक को जरूर जन्म देते हैं। समझ को पैदा कर सकते हैं। आगामी अनैतिक विचार को रोक सकते हैं इसलिए दान पूजा भक्ति करो, पुण्य बढ़ेगा। सत्संग करो परमात्मा पर आस्था बढ़ेगी। जीने की कला मिलेगी। पाप से अनैतिक आचरण से बचने की प्रेरणा मिलेगी। तुम अभाव में भी मुस्कुरा सकोगे। जड़ दिखती नहीं है पर वृक्ष को पूरा पोषण देती है। पुण्य दिखता नहीं है पर जीवन को सुविधाएं और परमात्मा पिपासु को समझ संयम की प्रेरणा जरूर देता है।
सद्कार्य की प्रेरणा देता है। जीवन में जितनी सुख सुविधाएं हैं पुण्य का ही परिणाम है। वर्तमान में जितनी भी सुख शांति है वह अतीत के सत्संग और धर्मास्था का ही परिणाम है। सत्संग परस्पर प्रेम करना, मैत्री भाव रखना, दया भाव सिखलाता है। महावीर की अहिंसा, बुद्ध की करुणा, जीसस का प्रेम, मोहम्मद का ईमान, राम की मर्यादा, कृष्ण का सात्विक प्रेम धर्म का ही परिणाम है।
दीपावली द्वार पर दस्तक दे रही है। जागो, आंखें खोलो, संप्रदायों के कारागार से बाहर निकलो और प्राणी प्रेम को जन्म दो। राम ने राक्षसों से पीछा छुड़ाया। दीपावली अंधकार से पीछा छुड़ाने आ रही है, उसका स्वागत करो। परमात्मा की कृपा को झुक कर प्रणाम करो। श्रद्धा का दीया जलाओ।