जैन संत डाक्टर राजेन्द्र मुनि जी ने भक्तामर के उप संहार पर बोलते हुए कहा कि इसके रचनाकार रचना करते हुए प्रभु आदिनाथ की भक्ति मे इतने तल्लीन हो गए कि उनकी एकाग्रता पूर्णतः समर्पित होने लगी, युगल शब्दों की ध्वनिओं से जो बेडियों से शरीर बंधा जकड़ा हुआ था वह स्वतः मुक्त होने लगा एवं समस्त कष्टो का निवारण हो गया! वस्तुत : भक्ति का तापमान जब चरम सीमा पर पहुँचता है तो अशुभ परमाणु अशुभ पापमय शक्तियां समाप्त हो जाती है अर्थात आसुरी शक्तियां भी देविक शक्तिओं के सामने नत मस्तक हो जाती है!
इतिहास के उज्जवल पृष्ठ इस बातों के आज भी साक्षी है! चाहे नल दमयंती के कष्ट हो, चाहे राम सीता की, मीरा, कबीर, सूरदास या प्रभु महावीर आदि के जीवन मे आने वाली बाधाएं हो उनका सहज निवारण हो जाता है! इसके पीछे मुनि जी ने तीव्र भावों के परिणामों का असर बतलाया जो वर्तमान मे भी सम्भव है! सभा मे आचार्य श्री देवेन्द्र जयंति निमित्त प्रारम्भ मे भक्तामर पाठ के साथ णमो लोए सव्व साहूनम का सामूहिक जाप करवा कर वन्दनाएं समर्पित की गई एवं इसी के साथ 48 दिवसीय विधान मे भाग लेने वाले भाई बहनों का साधना के साथ अभिनन्दन किया गया!
साधना रत समस्त श्रावक श्रविका जनों ने इसी क्रम को जीवन मे अपनाने का संकल्प ग्रहण किया एवं अनेक साधको ने इस विधान के दौरान होने वाले शुभ परिणाम संस्मरण का अनुभव सुनाया! महामंत्री उमेश जैन ने सभी का आभार प्रकट करते हुए दिनांक 31अक्टूबर दिन रविवार को आचार्य देवेन्द्र जन्म जयंती के विशेष आयोजन मे सभी को आमंत्रित किया व सामाजिक सूचनाएं प्रदान की।