बेंगलुरु। जो आपके जीवन में व्यवधान समाप्त करें, आपको पहनाए सत्य-सुख व शांति का परिधान, उसका नाम है विधान। व्यक्ति को दूसरों की पहचान से अपनी पहचान नहीं बनाते हुए स्वयं की पहचान बनाना चाहिए। यह विचार आचार्यश्री देवेंद्रसागरसूरीश्वरजी ने अपने प्रवचन में कहे।
उन्होंने कहा कि भक्ति आराधना व्यक्ति के जीवन का संविधान बने, तभी यह विधान करना सार्थक है। हॉस्पिटल, होटल व हाऊस तीनों परेशानी का कारण हैं।
मनुष्य को इन तीनों को छोड़कर परमात्मा के द्वार पर आना चाहिए, क्योंकि जब दुनिया के सारे सहारे समाप्त हो जाते हैं तो एक परमात्मा ही मनुष्य का सहारा होता है जो उसे संसार सागर से पार उतारता है।
उन्होंने कहा कि मनुष्य प्रेम व्यवहार से वश में होता है। पूजा अनुष्ठान, हवन विधि से इन्द्र देवता प्रभावित होते हैं और मेघ का रूप लेकर बरस पड़ते हैं। मंत्रों में अचिन्त्य शक्तियाँ होती हैं। ये मंत्र देवताओं को आकर्षित करते हैं।
व्यक्ति दूसरे की पहचान से अपनी पहचान बनाता है जबकि उसे स्वयं अपनी पहचान बनाना चाहिए। भगवान राम की पहचान मर्यादा के कारण है, महावीर की पहचान अहिंसा एवं जियो और जीने दो के कारण, कृष्ण की बाँसुरी के कारण, बुद्घ की करुणा के कारण और मोहम्मद का ईमान इस्लाम की पहचान बन गया है।
हर मनुष्य को हमेशा ईमानदारी के रास्ते पर चलकर अपनी पहचान स्वयं बनाना चाहिए। तभी समाज और राष्ट्र का उद्धार हो सकेगा।