चेन्नई. वेपेरी स्थित जय वाटिका मरलेचा गार्डन में विराजित जयधुरंधर मुनि ने कहा व्यक्ति की पहचान उसकी वाणी से होती है। सभ्य व्यक्ति की भाषा भी उच्च कोटि की होती है। बोलने से पहले हर शब्द को एक बार तो तोल लेना चाहिए। जो तोल – मोल के बोलता है, वह कभी कटु वचनों का प्रयोग नहीं करता है।
बुद्धिमान वही होता है, जो बोलने से पहले सोचता है । जो बिना सोचे मनचाहा बोलता है, उसे अनचाहा सुनना भी पड़ता है। वचन बड़े ही अनमोल होते हैं। अत: सावधानीपूर्वक उनका प्रयोग किया जाना चाहिए। वचन से ही सत्कार व तिरस्कार की प्राप्ति होती है। वचनों के दुष्प्रयोग के कारण ही रामायण और महाभारत जैसे बड़े-बड़े युद्ध हुए।
इंसान खाने में तो मीठा पसंद करता है, लेकिन बोलता कड़वा है, जो सबसे बड़ी विसंगति है। श्रावक के आठ वचन व्यवहार का वर्णन करते हुए मुनि ने कहा श्रावक को थोड़ा बोलना चाहिए। मौन रखना इंद्रिय नियंत्रण की सच्ची पराकाष्ठा है। जिसे स्वत: ही कलह झगड़े आदि से बचाव हो जाता है। जयपुरंदर मुनि ने कहा पुण्य पुंज महापुरुषों के जीवन चरित्र का वर्णन सुनने से स्वयं की पुण्यवाणी बढ़ती है।
महापुरुष स्व-पर कल्याण के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देते हैं। ऐसे ही एक महापुरुष आचार्य जयमल ने मरुधरा की पावन पवित्र भूमि में विचरण करते हुए सत्य धर्म का डंका बजाया एवं धर्म की उत्कृष्ट प्रभावना की, जिसके कारण उन्हें आज भी याद किया जाता है। इस अवसर पर नवरत्न खिंवसरा, राजकुमार पटवा, रंजीता सुराणा, निकिता लोढ़ा के तपस्या अनुमोदनार्थ संघ ने उनका सम्मान किया ।