Share This Post

Featured News / ज्ञान वाणी

बुराइयों पर अच्छाइयों की विजय का प्रतीक है विजयदशमी पर्व:  जयधुरंधर मुनि

बुराइयों पर अच्छाइयों की विजय का प्रतीक है विजयदशमी पर्व:  जयधुरंधर मुनि
जयमल जैन श्रावक संघ के तत्वावधान में वेपेरी स्थित जय  वाटिका मरलेचा गार्डन में विजयदशमी एवं आचार्य भूधर जन्मदिवस तप – त्याग के साथ मनाया गया। इस अवसर पर जयधुरंधर मुनि ने कहा विजयदशमी पर्व बुराइयों पर अच्छाइयों की विजय का प्रतीक पर्व है।
हर व्यक्ति जीवन में जय विजय प्राप्त करना चाहता है। कोई भी पराजय का मुंह देखना पसंद नहीं करता। लेकिन विजय उसी की होती है जो सन्मार्ग पर अग्रसर हो ता है।
बाह्य शत्रुओं से ज्यादा दुष्कर काम, क्रोध, राग, द्वेष रूपी आभ्यंतर शत्रुओं पर विजय प्राप्त करना है। कर्म रूपी शत्रु पर विजय प्राप्त करने से ही जगत विजेता बन सकता है। रावण पर राम की विजय अन्याय पर न्याय की विजय है। अन्याय का एक न एक दिन अवश्य अंत होता ही है।
आचार्य भूधर जन्म जयंति दिवस पर मुनि ने कहा वे भी धर्म के क्षेत्र में वीर योद्धा की तरह कर्म शत्रुओं से क्षमा और मैत्री के बल पर मुकाबला करते रहे। आगम के सूत्र “जय कम्मे सुरा ते धम्मे सुरा” की युक्ति के अनुसार कर्म और धर्म दोनों ही क्षेत्र में शूरवीर थे।
हाकीम पद पर आसीन होते हुए जब डाकुओं के दल के साथ मुकाबला करते समय उनकी प्रिय सांडनी का वियोग हो जाता है तभी उनके जीवन में एक मोड़ आ जाता है । ऊंटनी की वफादारी एवं उनकी शहादत से ओतप्रोत भूधर उसकी आत्मा को शांति पहुंचाने के लिए आचार्य धन्ना महाराज के पास पहुंचे तभी उनके भीतर संसार से विरक्ति हो जाती है।
जिस प्रकार जब तक पानी में ऊरर्णिया है तब तक नाव शांत नहीं रह सकती। उसी प्रकार स्वयं को शांत करने पर ही आत्मा को शांति मिल सकती है। 65 वर्ष की ढलती उम्र में संयम अंगीकार करने के बाद भी उन्होंने कठोर तपस्या प्रारंभ की एवं शुद्ध साधनाचार का पालन करते हुए एक उत्कृष्ट उदाहरण पेश किया।
उनका जीवन आज भी हर एक के लिए आदर्श एवं प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है। आचार्य भूधर अपने नाम के अनुरूप ही पृथ्वी के समान क्षमाशील एवं कष्ट सहिष्णु थे।
जिस व्यक्ति ने उन पर जानलेवा हमला किया था उसी को जीवन दान देते हुए अपना शिष्य बना कर क्षमा के गुणों को जीवन में आत्मसात किया। शत्रु को भी मित्र बनाने की कला विरले ही महापुरुषों में होती है।
92 वर्ष की उम्र में विजयदशमी के दिन है उनका संथारा सहित देवलोक गमन हुआ था। उनके शिष्य आचार्य रघुनाथ, आचार्य जयमल एवं कुशलचंद आदि भी जिनशासन की महती प्रभावना करने वाले बने।
जैसे पारस का स्पर्श पाकर लोहा भी सोना बन जाता है किंतु गुरु तो ऐसे कीमियागार होते हैं जो लोहे को सोना ही नहीं अपितु पारस बना देते हैं। आचार्य भुधर ने भी  ऐसे ही अपने शिष्य को स्वयं के समान बनाकर चमका दिया। इससे पूर्व नवपद ओली आराधना के अंतर्गत जयकलश मुनि ने श्रीपाल चरित्र का वांचन किया।

Share This Post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may use these HTML tags and attributes: <a href="" title=""> <abbr title=""> <acronym title=""> <b> <blockquote cite=""> <cite> <code> <del datetime=""> <em> <i> <q cite=""> <s> <strike> <strong>

Skip to toolbar