साहुकारपेट स्थित राजेन्द्र भवन में विराजित मुनि संयमरत्न विजय ने कहा यदि हम पापों को नष्ट व शत्रु को परास्त करना चाहते हैं, क्लेश को लेशमात्र भी रखना नहीं चाहते, सर्व अपराधों व अपकीर्ति से दूर होना चाहते हैं तथा अगले भव में लक्ष्मी प्राप्त करना चाहते हैं तो अपने मन में चुगली को मत आने दो।
जैसे अग्नि में कमल, सर्प की जिह्वा में अमृत, पश्चिम दिशा में सूर्य का उदय, आकाश में फसल, पवन में स्थिरता तथा मारवाड़ में कल्पवृक्ष नहीं होता, वैसे ही दुर्जनता में चंद्र जैसे उज्ज्वल यश की प्राप्ति नहीं होती।
जो मानव चुगली करता हुआ सौभाग्य चाहता है, वह मानो बिना परिश्रम के संपदा, कलह करता हुआ कीर्ति, प्राणियों के प्राण लेकर पुण्य, लज्जा रखकर नृत्य करना, अभक्ष्य भोजन करके निरोगता व निद्रा लेता हुआ विद्या प्राप्त करना चाहता है जो असंभव है।
चुगली करने वाला धर्म की गली को तोड़ देता है, बुद्धि की समृद्धि दूर कर देता है, कीर्ति को क्षीण करके दया के घर को धराशायी कर देता है, चिंता उत्पन्न कर शरीर को कष्ट देता है तथा क्रोध बढ़ाता है। सौभाग्य से जैसे सुंदरी, उत्तम विनय से जैसे विद्या, उद्यम से लक्ष्मी की श्रेणी, साहस से महामंत्र की सिद्धि, अमृत से अमरता व पुण्य की प्राप्ति होती है वैसे ही चुगली का त्याग करने से मानव को अपार कीर्ति प्राप्त होती है।