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बीज होते हैं वैसा ही फल मिलता है: उपप्रवृत्तिनि संथारा प्रेरिका सत्य साधना जी

बीज होते हैं वैसा ही फल मिलता है: उपप्रवृत्तिनि संथारा प्रेरिका सत्य साधना जी

हमारे भाईन्दर में विराजीत उपप्रवृत्तिनि संथारा प्रेरिका सत्य साधना जी गुरुणी मैया साता पूर्वक विराजमान है वह रोज हमें प्रवचन के माध्यम से नित नयी वाणी सुनाते हैं। वह वाणी इस प्रकार हैं।

बंधुओं जैसे कि इंसान की सोच इंसान की शांति समृद्धि और आनंद की आत्मा है। आजह मैं दुनिया का इतना सुंदर और स्वर्ग नुमा जो स्वरूप दिखाई दे रहा है। इसके पीछे भी इंसान की महान सोच काहीं कमाल है सोचो अगर इंसान के पास सोचना होती तो क्या होता मगर सोच इतनी है कि इंसान की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती है। इंसान में सोचने की ताकत है इसलिए इंसान, इंसान है अगर इंसान सोच को सुंदर बनाने की कला सीख ले तो वह दिन दूर नहीं जब स्वर्ग धरती पर होगा और सातों सुख उसके मुट्ठी में होगा यह ब्रह्मांड और कुछ नहीं अनुगूंज मात्र है या हर चीज लौटकर आती है जैसा हम बीज होते हैं वैसा ही फल मिलता है।

अगर हम खुश रहने के बारे में सोचें तो खुशियां हमारे आसपास घूमेगी अगर जीवन में दुख गम के बारे में सोचते रहेंगे तो सब चीजें बढ़कर उससे भी ज्यादा दुखी एवं चार गुनी बढ़ जाएगी। जैसे चुंबक चुंबक को खींचता है वैसे ही हम उसी दुख में चले जाएंगे और खींचते ही चले जाएंगे इसलिए ज्यादा दुख ना करके सुख का अनुभव कीजिए और धर्म ज्ञान में ज्यादा से ज्यादा वृद्धि कीजिए तो ही हम खुश रह पाएंगे यही जिंदगी है जय जिनेंद्र सा कांता सिसोदिया भायंदर से।

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