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बिना किसी को मिटाए, निर्माण की नई रेखाएं खींचें: देवेंद्रसागरसूरी

बिना किसी को मिटाए, निर्माण की नई रेखाएं खींचें: देवेंद्रसागरसूरी

श्री सुमतिवल्लभ नोर्थटाउन जैन संघ में बिराजमान पूज्य आचार्य श्री देवेंद्रसागरसूरिजी ने प्रवचन देते हुए कहा कि कुछ नया करना है, तो संकल्प लेना ही होगा।

संकल्प तो हम ले लेते हैं, लेकिन जीने के आधुनिक तौर-तरीके हमें अपने संकल्प, अपनी शपथ से भटका देते हैं। और कभी-कभी रास्ते में ही अटका देते हैं। एक अच्छे इंसान आप तभी बन सकते हो जब आपके अंदर आत्मविश्वास हो, कुछ कर गुजरने का दृढ़ निश्चय हो, साहसी निर्णायक क्षमता हो, आशावादी दृष्टिकोण हो, सकारात्मक सोच हो, उत्साही मन हो, दुःख में भी सुख खोज लेने की चाहत हो।सोचना यह है कि हम गहरे में जमे संस्कारों को कैसे सुधारें? जड़ तक कैसे पहुंचें? बिना जड़ के सिर्फ फूल-पत्तों का क्या मूल्य?

पतझड़ में फूल-पत्ते सभी झड़ जाते हैं, मगर वृक्ष कभी इस वियोग पर शोक नहीं करता। उसके पास जड़ की सत्ता सुरक्षित है, जिससे वसंत आने पर पुन: वृक्ष फूल-पत्तों से लहलहा उठता है। अंधेरा तभी तक डरावना है, जब तक हाथ दीये की बाती तक न पहुँचे। खुद को भविष्य निर्माता मानिए और कार्य शुरू कर दीजिए। वे आगे बोले की जीवन को सफल और सार्थक बनाने के लिए हमें कुछ जीवन-मंत्र धारण करने होंगे। यों तो हमारे धर्मग्रंथ जीवन-मंत्रों से भरे पड़े हैं। उनका प्रत्येक मंत्र एक दिशा-दर्शक है। उनको पढ़कर ऐसा अनुभव होता है, मानो जीवन का राजमार्ग प्रशस्त हो गया।

उस मार्ग पर चलना कठिन होता है, पर जो इन कठिनाइयों के बावजूद भी चलते हैं, वे मधुर फल पाते हैं। पूज्य आचार्य श्री कठोपनिषद् के एक मंत्र का उल्लेख करते हुए कहा की उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोत। इसका अर्थ है कि उठो, जागो और ऐसे श्रेष्ठजनों के पास जाओ, जो तुम्हारा परिचय परमब्रह्म परमात्मा से करा सकें, यानी उद्देश्यपरक जीवन से करा सकें। इस अर्थ में तीन बातें निहित हैं। पहली, तुम जो निद्रा में बेसुध पड़े हो, उसका त्याग करो और उठकर बैठ जाओ। दूसरी बात, आंखें खोल दो अर्थात अपने विवेक को जागृत करो।

तीसरी और आखिरी बात, चलो और उन उत्तम कोटि के पुरुषों के पास जाओ, जो तुम्हें जीवन के चरम लक्ष्य का बोध करा सकें। बस, जीवन का वही एक क्षण सार्थक है, जिसे हम पूरी जागरूकता के साथ जीते हैं और वही जागती आंखों का सच है, जिसे पाना हमारा मकसद है। सच और संवेदना की यह संपत्ति ही हमारी सफलता को सुनिश्चित कर सकती है। अत: आइए, इस विश्वास और संकल्प को सचेतन करें कि आज तक जो नहीं हुआ, वह अब हो सकता है। हम कोशिश करें कि जो आज तक नहीं हुआ, वह आगे कभी नहीं होगा इस बूढ़े तर्क से बचकर नया प्रण जगाएं। बिना किसी को मिटाए, निर्माण की नई रेखाएं खींचें। यही साहसी सफर शक्ति, समय और श्रम को सार्थकता देगा।

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