चेन्नई. साहुकारपेट स्थित जैन भवन में विराजित साध्वी सिद्धिसुधा ने कहा जो प्रभु के प्रति दर्शन वंदन के भाव रखता है उसका असुख का बंधन टूट कर सुख में बदल जाता है। प्रभु के प्रति श्रद्धा दिखाने से पहले उसके तरीको को जानने की जरूरत है।
मन में गलत भाव रख कर की गई श्रद्धा भी व्यर्थ हो जाती है। मनुष्य के अंदर धर्म करने की प्यास होनी चाहिए। जब प्यास लगेगी तभी धर्म सही मायने में हो पाएगी। साध्वी सुविधि ने कहा मनुष्य सफलता की सीढिय़ों पर तो बहुत ऊपर चढ़ गया लेकिन खुशियों की चाभी नीचे ही भूल गया। वर्तमान में लोगों के पास गाड़ी, बंगला, धन दौलत सब है लेकिन खुशी प्राप्त नहीं मिल पा रही है।
मनुष्य जितना ऊपर चढ़ता गया उसे उतनी सफलता मिलती गई पर इस भाग दौड़ में खुशी की चाभी गुम हो गई। अपनी खुशियां मनुष्य के भीतर ही है बस उसे तलाशने की जरूरत है। इस पर्व में मनुष्य की वो जरूरत पूरी हो सकती है। यदि व्यक्ति को सुख और आनंद उसके भीतर से मिलना शुरू हो जाये तो वह लाख ऊंचाई पर जाने के बाद भी खुश रह सकता है।
खुश रहकर सफलता की सीढिय़ां चढऩे वालों का जीवन बदल जाता है। संवत्सरी की तैयारी के लिए पर्यूषण के सात दिन मिले हैं। इन सात दिनों में अपनी आत्मा के कचरे को निकालना है और आठवें दिन भीतर के दीप को जलाना है।
संवत्सरी के दिन सभी को अपनी आत्मा में दिया प्रज्वलित कर लेना चाहिए। जैसे दीपावली से पहले सफाई की जाती है और फिर पूजा होती है। वैसे ही पर्यूषण के सात दिन आत्मा की सफाई होती है और आठवें दिन दीप प्रज्वलित की जाती है। सभी को अपनी शुद्ध आत्मा में संवत्सरी का दीप जला लेना चाहिए।