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बाहरी सुखों से विरक्त होने पर ही मिलेगा आत्मिक सुख : आचार्यश्री महाश्रमण

बाहरी सुखों से विरक्त होने पर ही मिलेगा आत्मिक सुख : आचार्यश्री महाश्रमण

तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता-शांतिदूत-अहिंसा यात्रा के प्रणेता-महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने अपने मंगल प्रवचन में फरमाया कि तीन प्रकार के बाह्य सुख होते है – शारीरिक सुख, वाणी सुख और मानसिक सुख। जो व्यक्ति इन तीनों में आसक्त रहता है वह आत्मा के सुख को नहीं देख पाता है। शरीर की अनुकूलता से शारीरिक सुख , प्रशंसा से मिलने वाला सुख वाणी सुख और मन की कल्पना के अनुसार होने से मानसिक सुख प्राप्त होता है।

इनमें अनुरक्त रहने से चिर आनंद की प्राप्ति नहीं होती है क्योंकि बाह्य सुख तो क्षणिक होते हैं। चिरकाल तक आत्मिक सुख पाने के लिए इन क्षणिक सुखों से ऊपर उठना पड़ता है। राग-द्वेष से मुक्त रहने पर इन बाह्य सुखों से ऊपर उठकर आत्मा का सुख पाया जा सकता है। आचार्य प्रवर ने उपस्थित गृहस्थों को उत्प्रेरित करते हुए कहा कि गृहस्थ लोग अपने दैनिक कार्यों में लगे रहते हैं। उन्हें अपना परिवार, समाज और व्यापार के लिए अनेक कार्य करते करने पड़ते हैं।

एक दिन में साठ घड़ी होती है जिसमें व्यक्ति को 58 घड़ी भले ही अपने दैनिक कर्म करें पर दो घड़ी धर्म में लगानी चाहिए। व्यक्ति को दो घड़ी अर्थात् 48 मिनट का समय बाह्य सुखों को छोड़कर आत्मिक सुख पाने की दिशा में लगाना चाहिए। इस समय में ध्यान, स्वाध्याय, जप आदि में अपनी आत्मा को रत करना चाहिए।

जीवन में परिस्थितियां कभी अनुकूल होती है कभी प्रतिकूल होती है परंतु व्यक्ति को अनुकूल परिस्थिति में ज्यादा खुशी और प्रतिकूल परिस्थिति में ज्यादा दुखी नहीं होना चाहिए क्योंकि समय अपनी गति से चलता रहता है। खुशी भी नहीं टिकती और दुख भी नहीं टिकता है। व्यक्ति अपने जीवन में समता की भावना रखकर आत्मा का कल्याण कर सकता है।

 आचार्य प्रवर ने अणुव्रत महासमिति अधिवेशन के समापन सत्र में फरमाया कि अणुव्रत हिंसा से अहिंसा की ओर ले जाने वाला, बुराई से अच्छाई की ओर ले जाने वाला आंदोलन है। अणुव्रत के माध्यम से व्यक्ति में नैतिकता और संयम के संस्कार पुष्ट हो रहे हैं। अणुव्रत पुरस्कारों के संबंध में फरमाते हुए कहा कि पुरस्कार और सम्मान प्रोत्साहित करने वाले होते हैं।

जो व्यक्ति अहिंसा, मैत्री के क्षेत्र में काम करते हैं, लोक कल्याण का कार्य करते हैं उनको यह पुरस्कार प्रदान होने से पुरस्कार स्वयं अलंकृत हो जाते हैं। अणुव्रत समिति के नेतृत्व परिवर्तन के विषय में फरमाया कि नेतृत्व भले ही परिवर्तित हो जाए परंतु राष्ट्र में अणुव्रत का प्रचार-प्रसार निरंतर होना चाहिए और सभी को अपने जीवन में अणुव्रत धारण करने की प्रेरणा दी।

अणुव्रत महासमिति के 70वें वार्षिक अधिवेशन के समापन समारोह के अवसर पर पुरस्कारों की घोषणा करते हुए अणुव्रत पुरस्कार 2018 के लिए प्रकाश आम्टे, अणुव्रत गौरव 2018 स्वतंत्रता सैनानी डॉ बी. एन. पांडेय, 2019 के लिए श्री धनराज बैद, अणुव्रत लेखक पुरस्कार 2018 के लिए श्री धर्मचंद जैन, 2019 के लिए श्रीमती पुष्पा सिंघी को प्रदान किया गया।

जूना अखाड़ा अंतर्राष्ट्रीय मंत्री श्री मठ कानाना मठाधीश श्री महन्त परशुराम गिरि जी महाराज ने आचार्य प्रवर से भेंट की एवं विभिन्न विषयों पर चर्चा की। प्रवचन में कर्नाटक विधान परिषद सदस्य श्री लहरसिंह सिरोया, धर्मीचंद ओस्तवाल, प्रकाश कुंडलिया ने भी अपने विचारों की अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम का संचालन मुनि श्री सुधाकरजी ने किया।

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