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बारह व्रत में नवमां व्रत सामायिक व्रत है: प.पू.सुधाकवरजी म सा 

बारह व्रत में नवमां व्रत सामायिक व्रत है: प.पू.सुधाकवरजी म सा 

कोडमबाक्कम वडपलनी श्री जैन संघ के प्रांगण में प.पू.सुधाकवरजी मसा की निश्रा में आज सोमवार तारीख 12/09/2022 को प्रखर वक्ता श्री विजय प्रभा जी के मुखारविंद से:-श्रावक के बारह व्रत में नवमां व्रत सामायिक व्रत है! सामायिक का मतलब प्रभू की साधना करना, माला फेरना, यतना पूर्वक कर्म निर्जरा करना होता है! सामायिक में दस मन के, दस वचन के एवं बारह काया के बत्तीस दोषों का ज़िक्र किया गया है!

राग द्वेष कषाय जैसे सभी दोषों से मुक्त होकर हमें सामायिक साधना करनी चाहिए! सामायिक करते समय घर की निगरानी रखना, बहुरानी या कामवाली से काम कराना या अपेक्षा रखना निन्दनीय कार्य है! हमारा मन भटकता है तो हम साधना नही कर सकते हैं!

सुयशा श्रीजी मसा ने फ़रमाया कि अनादि काल से हमारे ऊपर कई तरह के आवरण है जिनकी वजह से हम और हमारे मन की प्रवृत्ति कुछ बीमार सी बन चुकी है! जितनी बिमारियों के नाम हम जानते हैं उनका डर हमें सताते रहता है! हम हमेशा हमारी तुलना हमसे ज्यादा धनाढ्य परिवार से करते रहते हैं और सदा दुखी रहते हैं!

बहुत से लोग ऐसे भी हैं जो सामान्य रेखा से नीचे हैं और वे हमारी तरह जीना चाहते हैं! इसके लिए हमें परमात्मा को धन्यवाद देना चाहिए कि हम जैसे भी हैं, ठीक है! इसका मतलब यह कदापि नहीं है कि गरीब लोगों को देख कर हमें खुश होना चाहिए ! हमारी सोच का असर हमारे दिल दिमाग और शरीर पर बराबर पड़ता है! हमारी पहली प्राथमिकता हमारी जरूरतें होनी चाहिए! शौक आडम्बर तो बाद में भी पूरे किए जा सकते हैं! यह जरूरी नहीं है कि हमारे हर शौक पूरे होने चाहिए!

हमें हमेशा समभाव में रहने का प्रयत्न करना चाहिए! अचानक दुख आने से या विपत्ति आने से हम घबरा जाते हैं! कुछ समस्याएं हल होने में कुछ समय लगता है! कुछ समस्याएं हमारे गलतियों के कारण आती है! हमारे द्वारा जो समस्या सुलझ सकती है उन समस्याओं का सुलझाना ही ठीक है! हमें दूसरों के दुख में खुश नहीं होना चाहिए और उनके सुख से ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए! इतिहास गवाह है कि पीड़ा प्रलोभन और वासना ही सभी दुखों का और विपत्तियों का मूल है, और हमें हमेशा इसका ध्यान रखना चाहिए!

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