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बहुत बड़ी उपलब्धि है सहजानंद को प्राप्त करना : आचार्यश्री महाश्रमण

बहुत बड़ी उपलब्धि है सहजानंद को प्राप्त करना : आचार्यश्री महाश्रमण

आचार्य श्री महाश्रमण जी ने फरमाया शब्द की शक्ति सीमा होती है। शब्द के द्वारा सब कुछ बताना मुश्किल या संभव हो सकता है। जब आनंद की अनुभूति हो रही है, उसे बताने मेरे पास शब्द नहीं है ऐसा प्राय व्यवहार में रहा जाता है।

अनुभव एक चीज है अनुभव को जामा पहनाना कुछ संभव, कुछ असंभव हो सकता है। ज्ञान अनंत है, पर सारे ज्ञान को शब्दों में बता पाना मुश्किल है। एक आदमी अपना अनुभव कैसे बता सकता है उसके पास बोलने का यंत्र तंत्र नहीं है। अरणीय में रहने वाला आदमी जिसने कभी नगर को नहीं देखा वह नगर की भाषा कैसे समझ पाएगा?

 पूज्य प्रवर ने आगे फरमाया कि सहजानंद की बात को जो योगी साधक सहजानंद को प्राप्त कर लेता है पर वह बता नहीं पाएगा की शहजानंद कैसा हैं? वह वाणी का विषय नहीं है सहजानंद कितना विलक्षण विराट और महान होता है।

उसको प्राप्त कर लेना बहुत बड़ी उपलब्धि होती है। सहजानंद मिलना इतना आसान नहीं है उसके लिए साधना को पृष्ठभूमि चाहिए। संसार में रहते रहते भी उसको जितना अलिप्त मुक्त रहता है तब कुछ सहजानंद मिल पाता है।

हमारा प्रयास यह रहना चाहिए कि हम ज्यो ज्यो साधना आगे बढ़ेगी सहजानंद की प्राप्ति कर सकेंगे। साधना की पूर्णता पर पूर्ण शहजानंद प्राप्त हो जायेगा।

आचार्य श्री ने फरमाया कि कंकरो में हीरा कहां से मिलेगा? संसार में लिप्त रहेंगे तो शहजानंद कैसे मिल पाएगा, एक बुढ़िया और सुई का दृष्टांत बताते हुए फरमाया कि जहा सुई कोई है वहां प्रकाश करना होगा पदार्थों में भोगों में शहजानंद कहां से मिलेगा योग में जो आनंद है वह भोग में नहीं मिल सकता भोग का आनंद तुच्छ है, अल्प आनंद है, सहजानंद विशिष्ट है, पदार्थ परिस्थिति निरपेक्ष है, परिस्थिति सापेक्ष सुक्ष्म आनंद है, परिस्थिति निरपेक्ष शहजानंद है, स्वभाविक है वह आनंद अमन्द होता है।

साधु को तो ऐसी साधना करनी चाहिए कि सदा आनंद दिवाली रहे। पूज्य प्रवर ने फरमाया कि सामने दीपावली भगवान महावीर का परिनिर्वाण दिवस है।

 दीपावली उल्लास में निमित्त बनती है, पर वह दो-तीन दिन का होता है क्या हमारा आनंद दीपावली के साथ ही चला जाएगा? वह आनंद अपना कैसे हो सकता है हमारा आनंद हमारे हाथ में रहे, वह सहजानंद है स्वस्थ बने परवाश नहीं जीवन में जितना औचित्य हो सके स्वावलंबी रहे, एक दृष्टांत से समझाते हुए फरमाया कि परालंम्बिता से बचने का प्रयास करें।

आचार्य महाप्रज्ञ जन्म शताब्दी वर्ष पर ज्ञान चेतना का विकास हो। ज्ञान स्वाध्याय आदि से संयम में विश्वास जागे ऐसा प्रयास करें। कार्यक्रम का कुशल संचालन करते हुए मुनि श्री दिनेश कुमार जी ने समझाया कि मोक्ष जाने के लिए मार्ग के कांटो को गुहार दो वरना आगे बढ़ना भारी होगा।

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