चेन्नई. चातुर्मास आराधना पूर्ण होने जा रही है। जैन, बौद्ध एवं सनातन तीनों ही परंपराओं में चातुर्मास का महात्मय स्वीकार किया गया है। जैन साधु-साध्वी भगवंत चार महीने एक स्थान पर चातुर्मास काल में विराजते हैं और आठ महीने गांव- गांव, पांव -पांव चलते हुए सत्संग की गंगा बहाते हैं। नीतिकारों ने कहा भी है कि- ‘बहता नीर और रमता फकीर अच्छे लगते हैं। यह विचार- ओजस्वी प्रवचनकार डॉ. वरुण मुनि ने जैन भवन, साहुकारपेट में श्रद्धालुजनों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
उन्होंने कहा पानी यदि बहता रहता है तो वह निर्मल रहता है। एक स्थान पर यदि कभी ठहर जाता है तो उसमें काई जम जाती है। ऐ से ही प्रभु महावीर फरमाते हैं कि- साधु भी बिना कारण एक स्थान पर लंबे समय तक प्रवास न करे। कारण कि एक स्थान पर रहते-रहते वहां के लोगों से मोह – आसक्ति जुड सकती है और कभी- कभी तो व्यक्ति की अटैचमेंट ‘स्थान’ से ही हो जाती है। अत: साधना में रुकावट आने की संभावना है। दूसरी बात कि यदि साधु-संत एक ही स्थान पर विराजित रहेंगे तो अन्य स्थानों के लोग उनके दर्शन- सत्संग से वंचित रह जाएंगे। अत: साधु संतों को विचरण – भ्रमण करते रहना चाहिए। किसी कवि ने बहुत सुन्दर शब्दों में इन भावों को पिरोया है-बहता पानी निर्मला, खड़े सो गंदला होय।
साधु तो रमता भला, दाग न लागे कोय।।
भारत वर्ष एवं पूरे विश्व में जहां-जहां भी, जिस किसी मत, पंथ परंपरा के साधु-साध्वी जी विराजमान हैं, हम सभी की सुखद यात्रा के लिए मंगल कामना करते हैं। सभी संत- साध्वी जी भगवंत स्वस्थ रहें और अपनी धर्म प्रभावक यात्रा के द्वारा जन जीवन का सम्यक मार्गदर्शन करते हुए स्व-पर कल्याण साधना में सदा वर्धमानित बनें। यही प्रभु से कामना करते हैं।
विदाई समारोह 8 को
श्रीसंघ के मंत्री शांति लाल लुंकड़ ने बताया कि जैन भवन, साहुकारपेट में श्रमण संघीय उप प्रवर्तक पंकज -मुनि का चातुर्मास विदाई समारोह और धर्म प्राण लोकाशाह जयंति का आयोजन 8 नवंबर को किया जाएगा। इस अवसर पर सामायिक आराधना एवं गुणगान सभा का आयोजन होगा। इस अवसर पर महिला मण्डल एवं श्रीसंघ के अन्तर्गत सभी संस्थाओं के द्वारा गुरु भगवंतों के प्रति आभार एवं कृतज्ञता भी अर्पित की जाएगी।