श्री राजेन्द्र भावन चेन्नई साक्षात्कार वर्षावास विश्व वंदनीय प्रभु श्रीमद् विजय राजेंद्र सुरीश्वरजी महाराज साहब के प्रशिष्यरत्न राष्ट्रसंत, संघ एकता शिल्पी प. पू. युगप्रभावक आचार्य श्रीमद् विजय जयंतसेनसुरीश्वरजी म.सा.के कृपापात्र सुशिष्यरत्न श्रुतप्रभावक मुनिप्रवर श्री वैभवरत्नविजयजी म.सा. के भव्य वर्षावास के इस प्रवचन का विषय श्री अभीधान राजेंद्र कोष भाग 7
काया से अपराध करने को कर्म बंद कहते हैं लेकिन मन से हो रही हर पल हिंसा की क्रिया को अनुबंध कहते हैं बंद से भी बलवान है अनुबंध।
~ जिस मानव को हिंसा के बल रूप दुख, रोग ,भयंकर पीड़ा ,नर्क में जाने का ज्ञान है, वह कभी भी कोई भी पाप, हिंसा मन से नहीं ही करेगा।
~ जब तक हमें हमारे जीवन में हो रही गलतियां, दोषों का ज्ञान नहीं होगा तब तक हमें दोषों से, पापों से मुक्ति को पाना असंभव है।
~ जहां बोध है ज्ञान है वहां ही हम वास्तविक सुख, आनंद को पा सकते हैं।
~मानव यदि समझदार है तो उसके जीवन का मूल्य क्या होना चाहिए, इस भव का लक्ष्य क्या होना चाहिए, उसका आंतरिक निरीक्षण करता ही है।
~ हमारे भीतर में परिवर्तन किससे आता है किसी अन्य से आता है या हमारे स्वयं के संकल्प और पुरुषार्थ से आता है।
~ प्रभु महावीर स्वामी ने अनंत काल तक रहने वाले अनंत दुखों का अंत करने के लिए जीव दया (अहिंसा) नाम का श्रेष्ठ धर्म कहा है।
~ परम पूज्य प्रभू श्रीमद् विजय राजेंद्र सुरीश्वर जी महाराज साहब ने स्वयं के जीवन में अहिंसा धर्म केवल काया तक, वचन तक, मन तक ही नहीं किंतु अहिंसा धर्म संस्कारों तक अवतरित किया था।
~ हमारा जीवन यदि सकारात्मकता से भरपूर है तो हमारे पास दुख, दर्द, पीड़ा, रोग का प्रवेश कठिन है।
*”जय जिनेंद्र-जय गुरुदेव”*
🏫 *श्री राजेन्द्रसुरीश्वरजी जैन ट्रस्ट, चेन्नई*🇳🇪