चेन्नई. कोडमबाक्कम-वड़पलनी जैन भवन में विराजित साध्वी सुमित्रा ने कहा अशुभ भाव वाले जीव के शरीर से ही पता चल जाता है। जैसे जानवर अगर गंदे में बैठते है तो उनके शरीर से गंध आती है। वैसे ही गलत कर्म करने वालो से भी गंध आती है। यह सिर्फ उनके अशुभ कर्मो का ही प्रभाव होता है।
अशुभ कार्य करने वालो के जीवन मे शुभ का गठन कभी नहीं हो सकता है। उन्होंने कहा कि जब मनुष्य संयम का पालन करना शुरू करेगा तो उसके जीवन और शरीर के गंदगी अपने आप ही मिटते चले जायेंगे। पुण्यवान आत्माओ की शरीर और जीवन दोनों ही फूलों की तरह सुगंधित होती है। जब मनुष्य सही मार्ग पर चलने के लिए सही मार्गदर्शन चुनेगा तो उसका जीवन सुगंधित होगा।
उन्होंने कहा कि साधु संतों के साथ श्रावक श्राविकाओं को भी शास्त्रों का ज्ञान होना चाहिए। अगर ज्ञान होगा तो साधु के संयमी जीवन को श्रावक अच्छे से समझ लेंगे। इससे साधु संतों को काफी मदद मिल जाएगी। उन्होंने कहा कि संघ और समाज साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविकाओं के एक साथ आने से ऊंचाई पर पहुचता है। इसमें सबकी बराबर भूमिका होती है।
अगर एक भी साइड से कमजोरी दिखी तो नैया डूब सकती है। अगर श्रावक ज्ञानी होंगे तो साधु के संयमी जीवन मे मदद करेंगे। इससे साधु संतों को काफी सहयोग मिलेगा। उसी प्रकार साधु संत अपने ज्ञान से श्रावक का जीवन बदल देंगे।
उन्होंने कहा कि जिस प्रकार से तीन पहिये से कार नहीं चल सकती है उसी प्रकार साधु, साध्वी , श्रावक और श्राविका के एक साथ आये बिना समाज नहीं बदल सकता है। संघ समाज को ऊंचाई पर ले जाने के लिए चारो पायो को एक साथ मिलकर संयम का पालन करना होगा।