चेन्नई. साहुकारपेट स्थित राजेन्द्र भवन में चातुर्मासार्थ विराजित मुनि संयमरत्न विजय व भुवनरत्न विजय माधवरम में आचार्य महाश्रमण जी से खमतखामणा करने पहुंचे। वहां मुनि संयमरत्न विजय ने ‘बड़ी दूर से चलकर आया हूं’ गीत पेश करने के बाद अणुव्रत उद्बोधन सप्ताह के तहत आयोजित सर्वधर्म सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा सर्वधर्म के अनुयायी देह से भले भिन्न हो, लेकिन आत्मा से सभी समान है। देहधर्म से भी ऊंचा आत्मधर्म है।
फर्क मिट्टी के दीपक में होता है, उसकी ज्योति में नहीं, वैसे ही फर्क देह में होता है, आत्मा रूपी ज्योति में नहीं। राग-द्वेष रूपी शत्रु को जीतने के कारण अरिहंत परमात्मा ‘जिन’ कहलाए और उनके अनुयायी ‘जैन’। ‘हिं’ यानी हिंसा और ‘दू’ यानी दूर अर्थात् जो हिंसा से दूर रहे वह ‘हिंदू’ है। जो सबको अच्छी सीख दे वह ‘सिख’ है। जो ब्रह्म अर्थात् अपनी आत्मा को जान ले वह ब्राह्मण है। मुसल (नष्ट कर) दे जो अपने मान-अभिमान को वह मुसलमान है।
खुद और खुदा में सिर्फ एक सीधी लाइन का फर्क है, सीधे चले तो खुदा और उल्टे चले तो बेखुदा। जो मोह और मद को नष्ट कर दे वही मोहम्मद है। जो इंसानियत का सच्चा पाठ पढाए वह ईसाई है। संप्रदाय की परिभाषा बताते हुए कहा ‘सं’ यानी समानता और ‘प्रदाय’ यानी देना अर्थात् जो समानता की शिक्षा दे वह संप्रदाय है।
अहिंसा के धरातल पर ही सर्वधर्म टिक सकते है। राम में ‘र’ से ऋषभदेव और ‘म’ से महावीर अर्थात् राम शब्द में ऋषदेव से लेकर महावीर तक चौबीस तीर्थंकरों का समावेश हो जाता है और महावीर में ‘म’ से महादेव, ‘ह’ से हनुमान, ‘वी’ से विष्णु और ‘र’ से राम अर्थात् सभी हिंदू देवों का समावेश महावीर में हो जाता है। रहीम में भी र और म शब्द है जो सब पर रहम (दया) करे, वही रहीम है।