चेन्नई. प्रेम को खंडित करने का प्रथम चरण है क्रोध, मध्यम चरण है घृणा और अंतिम चरण है वैर। शक्कर के एक दाने से खीर मधुर नहीं हो सकती पर उसमें एक कंकड़ आने से स्वाद बिगड़ सकता है। भाव में परिवर्तन हो सकता है। घर को, परिवार को, जीवन को बिगाडऩे वाला तत्व है क्रोध। मान, माया, लोभ, अहंकार, अधिकार की एक चिंगारी जीवन का नंदन वन जलाकर राख कर देती है।
कोंडीतोप स्थित सुंदेशा मूथा भवन में विराजित आचार्य पुष्पदंत सागर ने कहा पानी की एक बूंद घर को तहस नहस नहीं कर सकती। एक बूंद से वस्त्र भी साफ नहीं हो सकता। एक बूंद पानी से स्नान नहीं हो सकता। एक रुपया गिरने से कंगाल नहीं हो सकते। घास का एक तिनका गंदगी नहीं फैला सकता, लेकिन ईष्र्या की एक चिंगारी सालों पुराने संबंध को खराब कर सकती है। परिवार को एक चिंगारी जुदा कर देती है।
एक मच्छरदानी हजारों मच्छरों से बचा देती है। नींद की एक गोली खा कर सबकुछ भुुला सकते हैं पर क्रोध का एक शब्द भी पचा नहीं सकते। ध्यान रखें एक इंजेक्शन रोग से बचा देता है।
पुरुष सिगरेट पीता है तो फेफड़ों को जलाता है। क्रोध करता है तो जीवन जलता है, आत्मा विकृत होती है। इसलिए क्रोध शत्रु है। क्षमा अमृत है, प्रेम अभयदान है उससे जीवन का उद्धार होता है। प्राणी मात्र को अभयदान मिलता है, निर्वाण का द्वार खुलता है।