कोंडीतोप स्थित सुंदेशा मूथा भवन में विराजित आचार्य पुष्पदंत सागर ने कहा प्रेम सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ तत्व है। प्रेम की ताकत के सामने आदमी झुकता है। रावण ने वासना के तूफान में सीता का अपहरण किया था। रावण को राम ने नहीं उसके काम ने मारा था।
हिरणी अपने बच्चे के प्रेम के कारण सिंह का सामना करती है और सफल भी होती है। यह बात अलग है कि प्रेम के नाम पर ही धोखा हो रहा है। लोग वासना को प्रेम का नाम दे रहे हैं।
हम दुर्गति में भटकने के लिए पैदा नहीं हुए। यदि परमात्मा बनना है तो ऊर्जा को ऊध्र्वगामी बनाओ। ऊर्जा पुरुषो का ध्यान करो। जैसे मोबाइल की बैटरी चार्ज करते हो, परमातमा की ऊर्जा से स्वयं को चार्ज करो। इससे हमारी आत्मा को इस अंधकार में फिर न भटकना न पड़े।
आत्मा सीता कर्मो के कारागर में कैद है। राम की तरह संयम के तीर से कामना -वासना के रावण का अंत करो। धर्म के अभाव में जीवन नरक है। प्रेम सर्वांग का रोमांच है। जो सब प्राणियों को महत्वपूर्ण मानता है प्रेम कर सकता है। शक्ति भक्ति के साथ हो और भक्ति श्रद्धा के साथ हो और श्रद्धा प्रेम के साथ हो तो आत्मा परमात्म बन जाता है।