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प्रेम और स्नेह का प्रतीक है रक्षाबंधन – साध्वी सुयशा

प्रेम और स्नेह का प्रतीक है रक्षाबंधन – साध्वी सुयशा

जय जिनेंद्र, कोडमबाक्कम् वड़पलनी श्री जैन संघ के प्रांगण में आज तारीख 11 अगस्त गुरुवार को प.पू. सुधा कवर जी मसा की निश्रा में प्रखर वक्ता विजयप्रभा मसा के मुखारविंद से:-रक्षाबंधन “सावन पूर्णिमा” या “नारियल पूर्णिमा” के नाम से भी जाना जाता है! हर भाई और बहन की एक दूसरे के प्रति हमेशा सद्भावना रहती है ताकि, कोई भी कठिनाई ना आए और कठिनाई आए तो भी का सामना करने का सामर्थ्य रहे! संयोग और वियोग ऐसे शब्द हैं जो हमारी जिंदगी में गहरा संबंध रखते हैं! इसलिए हमें कभी भी स्वयं की और अपने बहनों की और धर्म बहनों की मदद करने के लिए तत्परता से रहना चाहिए! रक्षाबंधन भाई-बहन के बीच एक पवित्र रिश्ता है जो चट्टान की तरह अटल पहाड़ से भी ऊंचा और झरने जैसा शीतल रहता है!

सुयशा श्रीजी मुखारविंद से:-भारतवर्ष की संस्कृति में बहुत सी तिथियां है और हर तिथि का एक महत्व है! आज ही के दिन विष्णु कुमार मुनि ने 700 अन्य मुनियों की नमो जी मंत्री के उपसर्ग से रक्षा की थी। इसी दिन को रक्षाबंधन कहते हैं!

भाई बहन का रिश्ता बहुत ही पवित्र रिश्ता होता है वह मंदिर के गर्भ गृह के दीपक के समान होता है जिसे बहुत सहेज कर और संभाल कर निभाना पड़ता है! और वो होता है परिवार! भाई बहन का रिश्ता, मां बेटी का रिश्ता बाप बेटी का रिश्ता! दूसरा होता है भंडारे का दीपक जो बुझ भी जाए तो वापस जला सकते हैं! वैसे ही बाहर वालों के रिश्तेदारी, जो उलझ भी जाए तो सुलझा सकते हैं! किसी भी मुसीबत में कैसी भी परिस्थिति में, “मैं हूं ना” ऐसा एक शब्द काफी है, बहन के साहस को बुलंदियों पर पहुंचाने के लिए! बचपन में रक्षाबंधन के पवित्र त्योहार का नाम सुनते ही बच्चों के दिल खिल जाते थे, पुलकित हो जाते थे! उनका उत्साह कोई चमत्कार का इंतजार कर रहा होता था! चिट्ठियों से पत्रों से समाचार भेजे जाते थे! रक्षाबंधन के दिन भाई बहन मिलकर एक दूसरे के स्वस्थ जीवन की आरोग्य जीवन की कामना करते थे! लेकिन आजकल की ज्यादा समझदारी में, आडंबर, अंहकार और दिखावे ने इसका स्वरूप बदल दिया है! हम बचपन में राखी बांधकर या बंधवा कर ज्यादा खुश थे! हमें हमारा प्यार स्नेह वात्सल्य बचपन के बच्चों के समान ही रखना चाहिए!

दो कुलों का नाम रोशन करने वाली इन बेटियों की आंखों में सागर जैसा असीम प्यार झलकता है अपने परिवार के लिए और अपने भाई के लिए! इसलिए रक्षाबंधन जैसे पवित्र भाई बहन के रिश्ते को, जिंदगी भर के अटूट बंधन को अच्छी तरह से निभाना चाहिए! रक्षाबंधन बनाना सही मायने में तभी सार्थक होगा जब हम अपना व्यक्तित्व ऐसा बनाएं कि हर महिला हमारे साए में अपने आपको महफूज़ महसूस कर सकें। आज के धर्म सभा में श्रीमती सुशीला जी बाफना ने 31 उपवास एवं मनीषा जी लुंकड ने 27 उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण किए। उसी के साथ अनेक धर्म प्रेमी भाई बहनों ने विविध तपस्याओं के प्रत्याख्यान ग्रहण किए।

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