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ज्ञान वाणी

प्रेम और सेवा से घर बनता है स्वर्ग-राष्ट्र-संत चन्द्रप्रभ

प्रेम और सेवा से घर बनता है स्वर्ग-राष्ट्र-संत चन्द्रप्रभ
सूरत। राष्ट्र-संत चन्द्रप्रभ महाराज ने कहा कि इंसान का स्वर्ग किसी आसमान या नरक किसी पाताल में नहीं वरन घर में ही होता है। जिस घर में प्रेम और सेवा है वह घर स्वर्ग है और जहाँ स्वार्थ और अहंकार है वह घर नरक है। उन्होंने कहा कि राम का दिनभर जाप करना सरल है, पर राम के त्याग और मर्यादा को जीना उससे हजार गुना ज्यादा अर्थपूर्ण है। घर, मकान और परिवार की परिभाषा देते हुए उन्होंने कहा कि ईंट, चूने, पत्थर से मकान का निर्माण होता है घर का नहीं।
जहाँ केवल बीबी-बच्चे रहते हैं वह मकान घर है, जहाँ माता-पिता, भाई-बहन आदि सभी हिलमिलजुल के रहते हैं वह घर घर नहीं परिवार है। उन्होंने कहा कि अगर सातों वारों को सार्थक करना है तो आठवें वार परिवार को सार्थक बनाएं। अगर परिवार में वार(लड़ाई) चलता रहेगा तो सातों वार बिगड़ जाएंगे।
संतश्री सोमवार को 3 शांति विला बंग्लोज, कामरेज पुलिस चैकी के सामने, कामरेज में आयोजित सत्संग श्रद्धालु भाई-बहनों को संबोधित कर रहे थे। परिवार के नाम पहला पैगाम देते हुए संतप्रवर ने कहा कि जो सास-बहू, बाप-बेटा, देराणी-जेठाणी आपस में शालीनता से पेश आती है उनके बीच में कभी कड़वाहट नहीं घुलती। उन्होंने घर के छोटे सदस्यों को प्रेरणा दी कि वे बड़ों के सामने सोफों पर न बैठें, उनके सोने के बाद सोएं और उन्हें खिलाकर खाएं। अगर आदमी जितनी शालीनता से संत के सामने पेश आता है अगर उतना ही माता-पिता के सामने शालीनता दिखाए तो घर अपने आप स्वर्ग बन जाए।
सहभागिता अपनाएं और सेवा बढ़ाएं-परिवार के नाम दूसरा पैगाम देते हुए संतश्री ने कहा कि घर का हर व्यक्ति गृहकार्यों में किसी-न-किसी रूप में सहभागिता अवश्य निभाए। घर में बिना कुछ काम किये खाना पाप है। जहाँ दूसरों को पिलाकर पिया हुआ पानी प्रसाद बन जाता है वहीं अकेले-अकेले पिया हुआ पानी सुबह पैशाब बन निकल जाता है। जमाने की करवट पर व्यग्ंय करते हुए संतप्रवर ने कहा कि जो बच्चा बचपन में मेरी मम्मी-मेरे पापा कहता है वही बड़ा होकर तेरी मम्मी-तेरे पापा करने लग जाता है।
उन्होंने कहा कि जिन मूर्तियों को हमने बनाया हम उनकी पूजा करना तो सीख गए, पर जिन माता-पिता ने हमने बनाया हम उनकी पूजा करना भूल गए। याद रखें, मंदिर में पूजा करना और स्थानक में सामायिक करना सरल है, पर घर को ही मंदिर और स्थानक बना लेना भगवान की सच्ची पूजा है।
सोच को बड़ा बनाएँ-संतप्रवर ने कहा कि परिवार को सुखी बनाने के लिए सोच को बड़ा बनाएँ। छोटी सोच वाले फूल बरसाने वालों पर काँटे बरसाते हैं और बड़ी सोच वाले काँटे फेंकने वालों पर भी फूल बरसाते हैं। जो भला करने वाले का भी बुरा करे वह शैतान है, जो भला करने वाले का भला करे वह इंसान है, पर जो बुरा करने वाले का भी भला करे समझो वह भगवान है।
उन्होंने घर में बड़ी सोच लाने की प्रेरणा देते हुए सासुओं से कहा कि घर में बेटी आराम करती थी तो अच्छा लगता था, पर बहू आराम करने लग जाए तो हम झल्लाने लग जाते हैं, ऐसा क्यों? कभी-कभी बहू को आराम करते देख हमें खुशी होनी चाहिए। क्या आपकी बेटी सुबह नाश्ता, दोपहर खाना, शाम को चाय और रात को खाना बनाती थी, पर आपकी बहू ये काम दिनभर करती है, इसका मतलब आपकी बहू अच्छी या बेटी? अगर सास, सास वाली सोच रखेगी तो उसे बहू में कभी अच्छाई नजर नहीं आएगी और सास की सोच माँ जैसी बन जाए तो उसे बहू में कभी बुराई नजर नहीं आएगी।
उदाहरण से सीख देते हुए संतप्र्रवर ने समझाया कि हर सास चाहती है कि उसकी बहू सिर ढक के बैठे। बहू का सिर ढका हुआ हो तो अच्छी बात है अगर कभी उसका सिर उघड़ जाए तो बुरा मत मानिए वरन् सोचिए आज मेरे घर में मेरी बेटी बैठी है। उन्होंने कहा कि जिन भाइयों की सोच सकारात्मक होती है वे चालीस साल तक साथ-साथ रह जाते हैं, पर सोच के नकारात्मक होते ही चार दिन भी साथ रहना भारी हो जाता है। उन्होंने कहा कि जिस घर में देराणी-जेठाणी, सास-बहू, भाई-भाई आपस में प्रेम, सहयोग और सकारात्मक सोच की भावना रखते हैं उनका घर, घर नहीं रहता मंदिर बन जाता है।
इससे पूर्व मुनि शांतिपिय सागर ने सभी भाई-बहनों को सामूहिक प्रार्थना करवाई। कार्यक्रम के लाभार्थी हरीष मेहता का श्री संघ द्वारा अभिनंदन किया गया।
राष्ट्र-संतों की धूमधाम से की गई अगवानी- राष्ट्र-संतों के कामरेज पहुंचने पर भव्य जुलूस निकाला गया जिसमें जैन समाज एवं अन्य समाज के सैकड़ों श्रद्धालुओं ने उनकी अगवानी की।
राष्ट्र-संतों का 27 को अंकलेष्वर में रहेगा प्रवास-राष्ट्र-संत 27 को सुबह 8 बजे अंकलेष्वर पहुंचेंगे जहां उनके दो दिवसीय प्रवचन सुबह 9 बजे स्वामीनारायण मंदिर हाॅल, जीआईडीसी, पुलिस स्टेषन के पीछे आयोजित होंगे। 

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