जैन संत डाक्टर राजेन्द्र मुनि जी ने भक्तामर स्तोत्र की व्याख्या करते हुए कहा कि यह चमत्कारी महास्तोत्र भक्त द्वारा की गई आदिनाथ की भक्ति है! इसीलिए प्रारम्भ मे भक्त व अमर देव को स्मरण किया गया अत : नामकरण भक्तामर रखा गया! इसके विभिन्न श्लोकों मे यंत्र मंत्र तंत्र का उपयोग किया गया प्रत्येक शलोक मे विशेष ध्वनियों का उच्चारण हुआ है! प्राचीन काल मे बड़ी से बड़ी बीमारिओ का निराकरण ध्वनि विज्ञान से सम्पन्न होता था!
आज भी किरणों द्वारा ऑप्रेशन आदि कराये जा रहे है मूलत :हमारी ध्वनियों से ही संसार का सम्पूर्ण क्रम चल रहा है! टी. वी. मोबाइल या अत्याधुनिक साधनों का प्रयोग भावना व ध्वनि से हो रहे है! आने वाले समय मे दृश्य व अदृश्य ध्वनियों से संसार का संचालन सम्भव है! जो विज्ञान तंत्र मंत्र यंत्र के माध्यम से जाना जाता है नामकरण समयानुसार अदलते बदलते रहते है! मूल विषय वस्तु वो ही विधमान रहती है!
नास्तिक विचारक अज्ञानता के कारण धर्म का पदार्थ को अस्वीकार करते हो किन्तु हकीकत यही थी है व रहेगी! सभा मे साहित्यकार श्री सुरेन्द्र मुनि जी द्वारा महान सुखदाई कलियुगी कल्पवृक्ष श्री भक्तामर जी के विविध रूपों का वर्णन विवेचन किया गया! भक्तजनो के हृदय श्रवण कर हर्ष विभोर है! समाज के महामंत्री उमेश जैन द्वारा सामाजिक सूचनाएं प्रदान की गई