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प्राकृत भाषा का अध्ययन राष्ट्र की एकात्मकता, संस्कारिता के लिए अति आवश्यक : डॉ जैन

प्राकृत भाषा का अध्ययन राष्ट्र की एकात्मकता, संस्कारिता के लिए अति आवश्यक : डॉ जैन

अंतर्राष्ट्रीय प्राकृत शोध संस्थान का दीक्षांत समारोह

चेन्नई : अंतर्राष्ट्रीय प्राकृत शोध संस्थान, चेन्नई के तत्वावधान में रविवार को ऑनलाइन दीक्षांत समारोह रखा गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रोफेसर डॉ सुधीप जैन नई दिल्ली, डॉ नरेंद्र भंडारी पूर्व वैज्ञानिक- इसरो, डॉ शकुंतला जैन, डाइरेक्टर- अपभ्रंश साहित्य अकादमी की विशेष उपस्थिति रही।

नमस्कार महामंत्र से दीक्षांत समारोह का शुभारम्भ हुआ। डॉ कृष्णचन्द चोरडिया ने स्वागत भाषण प्रस्तुत करते हुए अन्तर्राष्ट्रीय प्राकृत संस्थान का परिचय दिया। सन् 2021 तथा 2022 के 35 छात्र- छात्राओं को प्रमाण पत्र वितरित किये गये। भारत एवं अमेरिका, दुबई, सिंगापुर, आस्ट्रेलिया, थायलेंड, आदि कई देशों के विद्यार्थी यह कोर्स कर रहे हैं। सभी उत्तीर्ण विद्यार्थियों को डिग्री प्रदान की गई।

डाॅ प्रियदर्शना जैन और मीनू चोरडिया ने सभा का सुंदर संचालन किया और प्राकृत विद्या के अध्ययन की बारीकियों से सभा को अवगत कराया। श्रीबाला चोरडिया और रीटा सुतारिया ने विद्यार्थियों की तरफ से अपने अनुभव साझा किये।

डॉ सुदीप जैन ने बताया की प्राकृत विद्या का अध्ययन राष्ट्र की एकात्मकता, संस्कारिता आदि के लिए अति आवश्यक है। उन्होंने कहा जिस प्रकार संस्कृत का भ्रार्तृ, हिंदी में भाई और भाऊ दोनों रूपों में मिलता है। यह दर्शाता है कि भाई ईकार की ध्वनि है, जो उत्तर भारत में प्रसिद्ध है और वही दक्षिण में उकार के रूप में प्रसिद्ध है, इस प्रकार पूरे भारत को एक सूत्र में बांधने वाली प्राकृत भाषा ही है। प्राकृत भाषा में भगवान महावीर और गौतम बुद्ध के उपदेश है, जिनकी आज विश्व को बहुत जरूरत है।

डॉ नरेंद्र भंडारी ने कहा कि जैन आगम ज्ञान-विज्ञान का भंडार है। डॉ शकुंतला जैन ने कहा कि प्राकृत का अध्ययन करके, पांडुलिपि के अध्ययन और संपादन में विद्यार्थियों को गति करनी चाहिए। डॉ राजुल एवं डॉ संगीता ने भी विद्यार्थियों को बधाई दी और प्राकृत एवं जैन विद्या के अध्ययन के लाभ बताये।

ज्ञातव्य है कि यह पाठ्यक्रम अपभ्रंश साहित्य अकादमी, जयपुर द्वारा संचालित और राजस्थान विश्वविद्यालय द्वारा मान्यता प्राप्त है। लगभग 22 वर्षों से चेन्नई में यह पढ़ाई रिसर्च फाउंडेशन फॉर जैनालजी के अंतर्गत कराई जाती है। जिसमें अध्ययन करके अनेकों साधु-संत भी  लाभान्वित हुए हैं। यह जानकारी रिसर्च फाउंडेशन फाॅर जैनॉलेजी के अध्यक्ष डॉ कृष्णचंद चोरडिया एवं अंतर्राष्ट्रीय प्राकृत शोध संस्थान की समन्वयक डॉ प्रियदर्शना जैन ने जारी विज्ञप्ति से दी।

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