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प्रयोग के बिना योग व्यर्थ है: सत्य साधना जी

प्रयोग के बिना योग व्यर्थ है: सत्य साधना जी

हमारे भाईन्दर में विराजीत उपप्रवृत्तिनि संथारा प्रेरिका सत्य साधना जी गुरुणी मैया साता पूर्वक विराजमान है। वह रोज हमें प्रवचन के माध्यम से नित नयी वाणी सुनाते हैं। वह इस प्रकार हैं
बंधुओं जैसे किसी भी वस्तु का उपयोग दो ढंग से किया जा सकता है। सही या गलत अगर कोई भी चीज सही ढंग से उपयोग करें तो उसका पुण्य प्रबल होता है और गलत ढंग से करें तो बोलो प्रबल होते हुए भी कर्मों का बंधन होता है।

कुछ लोग इतने भाग्यशाली होते हैं कि उनको वस्तु लाना तो आता पर संभालना भी नहीं आता एवं उसका प्रयोग करना भी नहीं जानते इस पृथ्वी पर कुछ लोग ऐसे होते हैं जो वस्तुओं का प्रयोग करके उसका मूल्य बढ़ाते हैं। साहित्य कोष में दो शब्द मिलते हैं योग एवं प्रयोग, प्रयोग के बिना योग व्यर्थ है। प्रयोग भी दो प्रकार का होता है सतयोग और दुष्प्रयोग, प्रयोग के सम्यक विधि के अभाव से दिव्य पदार्थ भी सम्मान बन जाता है।

जय जिनेंद्र सा कांता सिसोदिया भायंदर

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