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प्रभु महावीर संकट को सौभाग्य में बदलने की कला सिखाते हैं : प्रवीण ऋषि

प्रभु महावीर संकट को सौभाग्य में बदलने की कला सिखाते हैं : प्रवीण ऋषि

लालगंगा पटवा भवन में गूंज रहे हैं महावीर के अंतिम वचन

Sagevaani.com/रायपुर। लालगंगा पटवा भवन में श्रीमद् उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना के दूसरे दिन बुधवार को परमात्मा के सूत्रों को बताते हुए उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि ने कहा कि विनय संकट में समर्थ बनने के लिए। विनय का वरदान जिसके पास होता है वह संकट को शक्ति का केंद्र बना लेता है। कैसे संकटों को शक्ति केंद्र बनाया जाता है, प्रभु महावीर निर्वाण कल्याणक की देशना में एक अनूठा सूत्र दे रहे हैं कि संकट की भक्ति मत करो, अनजाने में इंसान समस्या की भक्ति करता है। प्रभु कहते हैं कि समस्या से मुक्त हो जाओ। और कैसे समस्या से मुक्त होना इसके अनूठे सूत्र प्रभु ने फरमाए, जिन्हे सुधर्मा स्वामी ने पवित्र अक्षरों में सुरक्षित किया। उक्ताशय की जानकारी रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने दी है।

प्रभु महावीर यह वरदान किसी को नहीं देते है कि तेरे जीवन में कभी संकट नहीं आएंगे। यह संभव भी नहीं है, ऐसा कभी हुआ नहीं और कभी होगा भी नहीं कि संकट आएगा ही नहीं। लेकिन संकट को संकट समझना कि सौभाग्य का मार्ग समझना, इतना ही अंतर है हम में और परमात्मा में। परमात्मा कहते हैं संकट को सौभाग्य बनने की कला सीख लो। प्रभु कहते हैं कि पहले संकट को सुनो। आने वाली विपरीत परिस्थितियों को पहले सुनना। अंदर की श्रवण शक्ति विकसित होनी चाहिए। जो इस शक्ति को विकसित कर पाते हैं, वो अगली बात कर पाते हैं।

अगला सूत्र है संकट को जान लो। प्रभु कहते हैं कि सुनने और जानने में एक छोटा अंतर है। जानने का मतलब है कि ऐसी परिस्थित पहले किन सफल व्यक्तियों के जीवन में आई थी और उन्होंने उस समय क्या किया था। प्रभु तीसरा और महत्वपूर्ण सूत्र बताते हैं कि अभ्यास और कल्पना करें। मैं इन परिस्थितियों से कैसे बाहर निकल सकता हूँ, इसके बारे में कल्पना करें और प्रयास करें। समस्या को सुनना और ध्यान लगाना कि उसका समाधान क्या है और उस समाधान में जीने का प्रयास करना। सुनकर, जानकार काम नहीं चलता। एक बार प्रयास कर के काम नहीं चलता है। संकट को अनदेखा मत करो, अनजाने मत रहो। संकट को सुनो, संकट को जानो और उसे जीतने का प्रयास करो। संकट को शक्ति का केंद्र बनाने में महारथ हासिल कर आगे बढ़ो। परमात्मा कहते हैं कि जिसने ये सब कर लिया, उसे संकट छू नहीं पाते हैं, और अगर छू भी लिया तो उसे परेशान नहीं कर पाते।

प्रभु कहते हैं कि एक तरीका सब तरफ नहीं चलता है। सभी संकट एक जैसे नहीं होते हैं, और उन्हें दूर करने का तरीका भी अलग होता है। जैसा संकट होता है, वैसा प्रयास करना पड़ता है। संकट के साथ कभी समझौता नहीं करना है। अपनी मर्यादा को कभी नहीं भूलना। अगर मर्यादा तोड़कर संकट से समझौता कर लिया तो कमजोर बन जाओगे। संकट का सामना किया तो मजबूत बनोगे। परमात्मा कहते हैं कि स्वयं को संकट के लिए तैयार कर, मजबूत बन अंदर से। जो अंदर से मजबूत बनते हैं वे उन्हें कोई मजबूर नहीं कर सकता। प्रभु कहते हैं कि संकट की घड़ी में कभी व्याकुल नहीं होना, व्याकुल होने से संकट और बढ़ता है। चाहे जो भी परिस्थिति हो, मन को शांत रखना।

परमात्मा कहते हैं कि प्रतिकूलता में हम सफल हो जाते हैं, वहीं अनुकूलता में फंस जाते हैं। जब अनुकूलता मिले तो समझ जाना कि यह दलदल है, इसमें एक बार फंसे तो निकलना मुश्किल हो जाता है। सुविधा मिले तो आदमी असली हो जाता है और साधना मर जाती है। सुविधा देने वाला मालिक और तुम उसके गुलाम बन जाते हो।

रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने बताया कि रायपुर की धन्य धरा पर 13 नवंबर तक लालगंगा पटवा भवन में उत्तराध्ययन श्रुतदेव आराधना होगी जिसमे भगवान महावीर के अंतिम वचनों का पाठ होगा। यह आराधना प्रातः 7.30 से 9.30 बजे तक चलेगी। उन्होंने सकल जैन समाज को इस आराधना में शामिल होने का आग्रह किया है।

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