चेन्नई. वैदिक परंपरा में जो स्थान वेदों व उपनिषदों का है बौद्ध परंपरा में जो स्थान धम्मपद का है, सिक्ख धर्म में जो स्थान श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी का, ईसाई धर्म में बाईबिल का, इस्लाम धर्म में जो स्थान कुरान शरीफ का है, हिंदू धर्म में जो महत्व ‘गीता’ का है, वही स्थान जैन धर्म में श्रीमद् उत्तराध्ययन सूत्र का है।
यह विचार ओजस्वी प्रवचनकार डॉ. वरुण मुनि ने जैन भवन, साहुकारपेट में स्थानीय श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा भगवान महावीर ने अपने परिनिर्वाण से पूर्व जो धर्म सूत्र कहे, उनका संकलन ‘श्रीमद् उत्तराध्ययन सूत्र’ में मिलता है। प्रभु महावीर की अंतिम वाणी के रूप में प्रसिद्ध इस धर्म शास्त्र में आत्मा, कर्म, पुनर्जन्म, विनय, विवेक, ज्ञान, लेश्या, मन आदि अध्यात्म जगत के प्रत्येक विषय पर विशद वर्णन प्राप्त होता है।
गुरुदेव ने बताया श्रीमद उत्तराध्ययन सूत्र का विश्व की अनेक भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। विशेष बात यह है कि प्रभु महावीर के समय में लगभग आज से 25-2600 वर्ष पूर्व इस धर्म ग्रंथ के सिद्धांत जितने उपयोगी व प्रासांगिक थे उससे भी कहीं अधिक आज के युग में इन जीवन मूल्यों की आवश्यकता है।
उल्लेखनीय है कि इस धर्म ग्रंथ में क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य और शुद्र जाति के चारों ही वर्णों के ऋषियों का उल्लेख प्राप्त होता है। ये धर्म सूत्र न केवल जैन समुदाय के अपितु जन-जन की प्रैक्ट्रिकल लाइफ डेवल्पमेन्ट के सूत्र है। श्रीसंघ के उपाध्यक्ष गौतम चन्द मुथा एवं महावीर बोकडिय़ा ने बताया 7 अक्तूबर से जैन भवन के प्रांगण में प्रात: 8.15 से 9.01 बजे तक रुपेश मुनि शास्त्र का मूलवांचन, लोकेश मुनि भावार्थ – विवेचन फरमाएंगे तथा ओजस्वी प्रवचनकार डॉ. वरुण मुनि महावीर कथा का रोचक ढंग से प्रेरणादायक विशेष वर्णन प्रस्तुत करेंगे
प्रवचन सभा में दिल्ली, महाराष्ट्र, बेंगलूरु, मैसूर आदि स्थानों से श्रद्धालु जनों ने पधार कर गुरु दर्शन प्रवचन श्रवण का लाभ प्राप्त किया। उप प्रवर्तक पंकज मुनि के मंगलपाठ के द्वारा धर्म सभा का समापन हुआ।