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प्रभु महावीर ने भव्य जीवों को संसार सागर से तिरने के लिए जिनवाणी प्ररुपित की

प्रभु महावीर ने भव्य जीवों को संसार सागर से तिरने के लिए जिनवाणी प्ररुपित की

पुज्य जयतिलक जी म सा ने जैन भवन, रायपुरम में प्रवचन में बताया कि अनंत उपकारी प्रभु महावीर ने भव्य जीवों को संसार सागर से तिरने के लिए जिनवाणी प्ररुपित की। जिनवाणी अनादि काल से मोह निद्रा में लीन आत्मा को जागृत करती है। सत्य का भान, यथार्थ का ज्ञान होता है! जन्म मरण के चक्र से मुक्त करने में जिनवाणी ही सक्षम है! जन्म श्रृंखला को तोडने वाली एक जिनवाणी ही है।

कहते है कि एक सिंह शावक रास्ता भटक गया। और भेड के झुंड में मिल गया। वह सिंह शावक माता भेड के दुग्ध पान से रहने लगा! अपना भान वह भूल गया। एक बार जंगल का राजा सिंह निकला ! वह सिंह उस शावक, सिंह को उसका भान कराने के लिए गुर्राता है! उसे पानी में अपनी एवं स्वयं की परचाई दिखाई तो वह शावक सिंह को अपने स्वरूप का भान हो गया! इसी तरह भगवान कहते है आप भी चिन्तन करो आप भी घाती अघाति कर्म को क्षय कर मुक्त हो सकते है। मोह निद्रालीन आत्मा को अपनी अनंत शक्ति का भान नहीं हो होता है। अत: जागो, पुरुषार्थ करो! कर्मों के आवरण को हटाओ! कर्म से आत्मा में ज्यादा बल है। यह ज्ञान जिनवाणी से ही होगा। भेद विज्ञान को प्राप्त करो!

सिद्ध जैसी जीव है. जीव सो ही सिद्ध होय,

 कार्य मैल का आंतरो, बुझे बिरला कोय।

एक चींटी को भी हीन मत समझो। उसमें हाथी को पछाड़‌ने की ताकत है। जिस दिन आत्मा जागृत हो जाती है उस दिन कर्म हार जाता। अष्ट कर्म मदारी की तरह संसार में नचाते हैं! यह मनुष्य जीवन इन कर्मो से मुक्त होने के लिए है। जीवन मृत्यु के बीच का काल ही जीवन जीन से मुक्त होने की कला है, यह कला ही पाँच महाव्रत एवं 12 अणुव्रत है। जब कर्म रिक्त होते है तो आत्मा सिद्ध शिला में विराजमान होती है। यदि आप इस चातुर्मास में भी बंधन मुक्त होने का प्रयास नहीं करेंगे तो यह व्यर्थ हो जायेगा। चातुर्मास का संपूर्ण लाभ ले! पूर्ण विवेक रखो। यह मानव तन मिला है तो जीना सीखो। द्रव्य से कम किन्तु भाव से अधिक कर्तव्य बंध होते हैं। यहां तक केक में चित्रकारी आती है आक्रति वाले कोई पदार्थ उपयोग में न ले। उससे भी भाव हिंसा होती है।

प्रसंग 12 व्रतो में स्त्री पुरुष का मर्म प्रकाशित नहीं करना। मर्म प्रकाशन से अनर्थ होता है। कर्मबंध होता है। क्या तलाक होने से समस्या का हल हो सकता है! पुरुष में मान होता है स्त्री में माया होती है! मान को होता है, लोभ के वश माया होती है। दोनों ही विपरीत प्रवृत्ति है। इससे समस्या होती है! यह चार, कषाय को नष्ट करे । इनसे उपर उठ जाय तो सारी समस्या हल हो जाती है। घर के मर्म को घर में ही रखे। स्त्री को दोनो घर की शान, इज्जत, शांति बनाए रखना आपका कर्तव्य है!

आजकल मोबाइल ऐसा साधन है कि जिसके कुछ थोड़ा हो जाय तो तुरंत बात पहुँच जाती है! परिवारों में बात ठन जाती है। धैर्य रखो! बात को समेट लो! बिगडी को संवार लो! घर परिवार को धर्म से जोड़ लो! पूरा परिवार आपका गुणगान करेगा! श्रावक के 12 व्रत घर में परम शांति लाना है! सारे व्यवहार सीखाता है। जीवन मरण का चक्र अपने आप मिट जाता है! जीवन में व्रत संयम न हो तो घर में क्लेश का वातावरण बन जाता है। क्रोध कषाय के आवेग में परिवार को नष्ट कर देता है! स्त्री पुरुष समझदारी नहीं रखे तो दोनो पति पत्नी का जीवन बर्बाद होता है! भगवान सिखाते है कि एक दूसरे की गलती को माफ करके शांतिपूर्वक जीना सीखें। कर्मो के उदय से कषाय से ऊपर नीचे होता है समभाव रखे। नारी लक्ष्मी है सरस्वती है आने वाली पीढ़ी को संस्कारित करती है।

संचालन मंत्री नरेन्द्र मरलेचा ने किया। यह जानकारी अध्यक्ष पारसमलजी कोठारी ने दी ।

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