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प्रभु भक्ति से मानव शरीरवादी से आत्मवादी बनता है: डाक्टर राजेन्द्र मुनि जी

प्रभु भक्ति से मानव शरीरवादी से आत्मवादी बनता है: डाक्टर राजेन्द्र मुनि जी

जैन संत डाक्टर राजेन्द्र मुनि जी ने प्रवचन करते हुए तीर्थंकरो की विशेषताओ का वर्णनकिया, पुण्य के प्रबल उदय से अनेक प्रकार के रोग शोक व आधिव्याधी स्वत : समाप्त होने लग जाती है! दुष्ट से दुष्ट आत्माये भी उनके सामने नत मस्तक होकर अपने जीवन को रूपात्रिक कर देती है! जिसे पूर्वाचार्यो ने सत्संग कहा जिसका ततपर्य है आत्मा को जानना आत्मा को पहचानना हमारे अपराध आत्मा कोन जानने से आत्मा के प्रति अविशवास के कारण बढ़ते है! सभी जीवों का सुख दुख मेरा अपना है!

सामने वाले का कष्ट मेरा कष्ट अनुभव होने लग जाए तो धरती स्वर्ग का रूप धारण कर लेती है! मानव ही नहीं पशु जगत को भी अभय दान प्राप्त हो जाता है!जितनी भी हिंसाए हुई या हो रही है उसका मूल कारण है हम शरीर को ही सर्वस्व मान लेते है। इसका अधिक से अधिक पोषण करने मे जिन्दगी गुजार देते है नतीजा शरीर एक दिन मिट्टी मे विलय हो जाता है!पंच भूतों से निर्मित शरीर पुन : पंच भूतों मे समा जाता है पर रस लोलुपता के चलते मानव जीवन भर पापों का ऊपर्जन करता चला जाता है! आवश्यकता है हम आत्मा का अभ्यास करें! समस्त प्राणी मे आत्मा का दर्शन करें!

मानतुंग जी आचार्य आदिनाथ भगवान को वन्दन करते हुए कह रहे है कि आपकी ऊर्जा के सम्मुख जंगल की प्रलयकारी अग्नि लावा की भांति प्रलय मचा रहिहो, तीव्र वेग का पवन उसे और अधिक प्रज्जवलित कर रहा हो किन्तु आपके स्मरण या समर्पण से साधको को वह अग्नि भी शीतल रूप धारण कर शान्त हो जाती है! सभा मे साहित्यकार सुरेन्द्र मुनि जी द्वारा भक्तामर का उच्चारण कर उसके यन्त्र मंत्र का स्वाध्याय करवाया गया जिसे श्रवण कर भक्तो का हृदय प्रफुलित हो गया।

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