जैन संत डाक्टर राजेन्द्र मुनि जी ने कल्पतरु श्री भक्तामर जी स्तोत्र पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आचार्य मानतुंग जी आदिनाथ भगवान की स्तुति के पहले वन्दन स्वरूप अपने को बड़े बड़े विद्वानों आचार्यो इन्द्र व देव के सम्मुख बल से कमजोर मानते हुए कहते है कि कहाँ तो सूर्य का प्रकाश और कहाँ दीपक की मौजूदगी हे प्रभो आपके सामने मैं अल्प सा दीपक हूं! आप सिंधु हो मैं तो उसमें एक बिंदु तुल्य हूँ भक्ति मे विनय गुण की प्रधानता रहती है विनय से विद्या आदि गुणों की प्राप्ति होती है, बड़ा व्यक्ति अपने मुँह से कभी भी अपने को बड़ा साबित नहीं करता, उसकी लघुता मे ही प्रभुता छिपी रहती है! हीरा चाहे लाखों का हो या फिर करोड़ों का हो अपने मुँह से वह अपनी महत्ता स्थापित नहीं करता ग्राहक लेनदार ही उसकी मूल्यवता पहचान लेता है!
हमारे जीवन मे भी यह विनय गुण प्राप्त हो जाए तो महत्ता स्वतः बढ़ जाती है! भक्त का ह्रदय नम्रता से भरपूर हो जाता है! मानव का भूषण विनय गुण ही है लेकिन आज का मानव इस गुण से दिनों दिन दूर होजाता है! अहंकार पतन की निशानी है इतिहास साक्षी है जब जब देश के शासको मे अहंकार आया तब तब उनका पतन हुआ है! सभा मे साहित्यकार श्री सुरेंद्र मुनि जी द्वारा विधि विधान से सम्पन्न भक्तामर जी का सामूहिक गान जाप सिद्धि की गई, जिससे जनता मे अपार हष व्याप्त है एवं आदिनाथ भगवान की गुणगाथा श्रवण कर धर्म साधना करने कराने के भाव उत्पन्न है! प्रभु प्रार्थना मे मन की शांति तन की शान्ति एवं सामाजिक जीवन मे गुण वता प्रकट होती है! प्रार्थना से जीवन निर्विकारी बनता है प्रार्थना से घर परिवार मे वातावरण मंगलमय बनता है! महामंत्री उमेश जैन व प्रधान महेश जैन ने दिल्ली से आए समाज सेवियों का अभिनन्दन किया।