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प्रभु को भी प्रभु बनने में आनंद नहीं: मुनिप्रवर श्री वैभवरत्नविजयजी म.सा.

प्रभु को भी प्रभु बनने में आनंद नहीं: मुनिप्रवर श्री वैभवरत्नविजयजी म.सा.

        श्री राजेन्द्र भावन चेन्नई मे विश्व वंदनीय प्रभु श्रीमद् विजय राजेंद्र सुरीश्वरजी महाराज साहब के प्रशिष्यरत्न राष्ट्रसंत, संघ एकता शिल्पी प. पू. युगप्रभावक आचार्य श्रीमद् विजय जयंतसेनसुरीश्वरजी म. सा. के कृपापात्र सुशिष्यरत्न श्रुतप्रभावक मुनिप्रवर श्री वैभवरत्नविजयजी म.सा. के भव्य वर्षावास चल रहा है।

~ प्रभु महावीर स्वामी ने अहिंसा धर्म की पालना संसार के मान, पूजा, प्रतिष्ठा के लिए नहीं किंतु स्वयं के ज्ञान, दर्शन, गुणों को पाने के लिए की थी।

~ प्रभु को भी प्रभु बनने में आनंद नहीं, किंतु प्रभुता प्रकट करने में आनंद है।

~ जिस मानव का निर्णय स्पष्ट है उसके लिए प्रभुता प्रकट करना अत्यंत सरल है।

~ अज्ञानी मानव के लिए स्वयं के जीवन में परिवर्तन लाना कठिन है किंतु समझदार के लिए मूलभूत परिवर्तन संभव है।

~ जो मानव इस अमूल्य मानव भव का मूल्य समझ गया है वह हर पल गुणों को पाने के लिए ही प्रबल पुरुषार्थ करता है।

~ यदि हमारे मन में प्रभु के वचनों का बहुमान और पालन नहीं है तो हम प्रभु की कितनी भी पूजा भक्ति करें वह सार्थक नहीं होगी।

~ हम प्रभावक क्रिया, ज्ञान, धर्म में जुड़ गए हैं लेकिन वह धर्म की फलश्रुति हमारे जीवन में प्रकट नहीं हुई।

~ यदि हम प्रभु के वचनों के सहारे नहीं जिएंगे और समाज के साथ जियेंगे तो हमारे जीवन में दुख निश्चित आएगा।

~ हमारे ह्रदय में रहे हुए परमात्मा पद को प्रकट करने के लिए ही यह महान मानव भव, देव, गुरु, धर्म मिला है।

~ परम पूज्य प्रभु श्री राजेंद्र सुरीश्वर जी महाराज जीवन की अंतिम सांस तक सम्यक दर्शन, ज्ञान और चरित्र के बल से जिए थे।

    *”जय जिनेंद्र-जय गुरुदेव”*

🏫 *श्री राजेन्द्रसुरीश्वरजी जैन ट्रस्ट, चेन्नई*🇳🇪

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