चेन्नई: यहाँ विरुगमबाक्कम स्थित एमएपी भवन में विराजित श्री कपिल मुनि जी म.सा. के सानिध्य व श्री एस. एस. जैन संघ विरुगमबाक्कम के तत्वावधान में सोमवार को भगवान महावीर निर्वाण कल्याणक , श्री गौतम स्वामी केवल कल्याणक और आर्य सुधर्मा स्वामी पट्टआरोहण महोत्सव के प्रसंग पर नववर्ष दीपावली महा मांगलिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया ।
इसका हिस्सा बनने के लिए अलसुबह पौ फटते ही श्रद्धालुओं का तांता लगना शुरू हो गया । इस कार्यक्रम की शुरुआत भगवान महावीर की अंतिम वाणी श्री उत्तराध्ययन सूत्र के पारायण के साथ गौतम स्वामी और पञ्च परमेष्ठी की स्तुति संगान से हुई ।
श्रद्धालुओं द्वारा समवेत स्वरों में संगान से वातावरण भक्तिमय हो गया । इस मौके पर श्री कपिल मुनि जी म.सा. ने कहा कि भगवान महावीर ने कार्तिक अमावस्या को अपने सम्पूर्ण योगों का संवरण करके अयोगी अवस्था को प्राप्त करते हुए मोक्ष को प्राप्त किया । मुक्ति गमन के पूर्व प्रभु ने प्राणी मात्र के प्रति अनुकंपा का परिचय देते हुए 16 प्रहर तक अपनी देशना का निर्झर प्रवाहित किया ।
उस देशना के संकलन का नाम ही उत्तराध्ययन सूत्र है । प्रत्येक वर्ष प्रभु के निर्वाणोत्सव के प्रसंग पर इस आगम के वांचन की स्वस्थ परम्परा चली आ रही है । प्रभु महावीर के अनुयायी को अहोभाव से श्रद्धा पूर्वक इसका श्रवण और यथाशक्ति आचरण करके प्रभु के प्रति श्रद्धा का अर्घ्य समर्पित करना चाहिए । भगवान की वाणी में जीवन निर्माण के सूत्रों का उल्लेख किया गया है ।
जीवन के प्रति जागरूक व्यक्ति को इसके स्वाध्याय का संबल लेकर साधना पथ और जीवन पथ को आलोकित करके आध्यात्मिक तरीके से दीवाली मनाएं । अंतर्मन के दीपक में उत्साह, उमंग और सही सोच और वास्तविक सुख शांति की लौ को निरंतर प्रज्वलित बनाये रखने के लिए प्रभु वीर का ध्यान करना जरुरी है ।
मुनि श्री ने कहा कि भगवान महावीर का स्मरण और उनके बहुआयामी व्यक्तित्व के महासागर में गोता लगाने से व्यक्ति को सभी तरफ से भय मुक्त बनाता है । मुनि श्री आगे कहा कि कार्तिक शुक्ला एकम की तिथि आज गौतम प्रतिपदा के रूप में विख्यात और अमर है । गौतम स्वामी को आज के दिन ही घाती कर्मों के क्षय होने से कैवल्य की प्राप्ति हुई थी । वे भगवान महावीर के साधु संघ के शिरोमणि और प्रमुख शिष्य थे ।
अपने आराध्य के प्रति उनका समर्पण लाजवाब था । वे अनंत लब्धि के निधान होते हुए भी जीवन में लघुता को धारण करके प्रभु महावीर के प्रति सर्वात्मना समर्पित रहते थे । उन्होंने भव्य जीवों के हितार्थ प्रभु से अनेक प्रश्नों का समाधान किया । जो आज भी हमारे लिए एक साधक जीवन की डायरी के रूप में मील के पत्थर के समान हैं ।
मुनि श्री ने कहा कि वर्तमान में श्वेताम्बर परंपरा में जो आगम साहित्य उपलब्ध है वह गणधर आर्य सुधर्मा स्वामी के अनुग्रह से जिनशासन को अनुपम देन है । भगवान महावीर के निर्वाण के बाद उन्हें संघ संचालन का दायित्व सौंपा गया । जिसे 20 साल तक कुशलता के साथ निर्वहन करके उन्होंने जिनशासन की भरपूर सेवा की । संपूर्ण जैन समाज आज भी उनके योगदान को याद करके गदगद महसूस करता है ।
मुनि श्री ने अपने सारगर्भित उद्बोधन के बाद वीर निर्वाण संवत 2546 के आरम्भ के अवसर पर जैन धर्म के प्रभावशाली स्तोत्र, छंद और मंत्रोच्चार के साथ महामांगलिक प्रदान किया जिसे श्रद्धा पूर्वक बड़ी संख्या में उमड़े श्रावक श्राविकाओं ने श्रवण किया । इस मौके पर मुनि श्री ने सभी के आध्यात्मिक जीवन की उन्नति और खुशहाली की शुभ कामना देते हुए अपना मंगल आशीर्वाद प्रदान किया ।
इस मौके पर पन्नालाल बैद , नेमीचंद लोढा,मीठालाल पगारिया, महेन्द्र कुमार बैद, किशोर धोका, मनोहरलाल रांका, हस्तीमल छाजेड़, धर्मीचंद कांठेड़, पदमचंद कांकरिया, आलोक गोलेछा, महेन्द्र गादिया, सुरेशचंद गुगलिया, जबरचंद बम्ब आदि शहर के अनेक गणमान्य व्यक्ति सहित बड़ी संख्या में लोग मौजूद थे । कार्यक्रम का संचालन संघ मंत्री महावीरचंद पगारिया ने किया।